आज के इस Notes मे हम भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन GK Facts के बारे मे जानकारी प्राप्त करेंगे । जैसे – पुर्तगालियों का भारत आगमन, डचों का भारत आगमन, अंग्रेज़ों का भारत आगमन एवं भारत में फ्रांसीसी शक्ति का आगमन से संबंधित तथ्यों की जानकारी ।
भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन GK
इस इकाई का अध्ययन करने के उपरांत ‘भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन और उससे सम्बंधित विभिन्न पहलुओं’ पर आपकी समझ विकसित होगी।
- पुर्तगालियों का भारत आगमन
- डचों का भारत आगमन
- अंग्रेज़ों का भारत आगमन
- भारत में फ्रांसीसी शक्ति का आगमन
पुर्तगालियों का भारत आगमन (Arrival of the Portuguese in India)
- यूरोपीय शक्तियों में सबसे पहले पुर्तगालियों ने भारत में प्रवेश किया। नये समुद्री मार्ग की खोज करते हुए वास्कोडीगामा 1498 ई. में केप ऑफ गुड होप से होकर भारत के पश्चिमी तट पर अवस्थित बंदरगाह कालीकट पहुँचा। जहाँ कालीकट के तत्कालीन शासक जमोरिन के द्वारा उसका स्वागत किया गया।
- वास्कोडीगामा के भारत आगमन से पूर्व 1487 ई. में बार्थोलाम्यो दियाज नामक पुर्तगाली अफ्रीका के दक्षिणी सिरे तक पहुँचा तथा इस स्थान को केप ऑफ गुड होप नाम प्रदान किया।
- पुर्तगाली कम्पनी की स्थापना एस्तादो द इंडिया के नाम से 1498 ई. में की गई। भारत में प्रथम पुर्तगाली किले की स्थापना 1503 ई. में कोचीन में तथा द्वितीय किले की स्थापना 1505 ई. में कन्नूर में की गई।
- प्रथम गवर्नर के रूप में फ्रांसिस्को दी अल्मीडा का भारत आगमन 1505 ई. में हुआ। अल्मीडा द्वारा भारत में नीले या शांत जल की नीति को अपनाया गया।
- 1509 ई. में अल्फान्सो दी अल्बुकर्क अगले पुर्तगाली गवर्नर के रूप में भारत आया, जिसे भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। 1510 ई. में अल्बुकर्क ने गोवा को बीजापुर के शासक यूसुफ आदिलशाह से छीनकर अपने नियंत्रण में लिया। अल्बुकर्क ने 1511 ई. में मलक्का तथा 1515 ई. में फारस की खाड़ी में स्थित होर्मुज पर भी अधिकार कर लिया। इसी समय हिंदू महिलाओं के साथ विवाह की नीति भी अपनाई गई।
- नीनो डी कुन्हा अगला पुर्तगाली गवर्नर बनकर 1529 ई. में भारत आया। 1530 ई. में कुन्हा ने पुर्तगालियों की औपचारिक राजधानी कोचीन से गोवा स्थानांतरित कर दी। कुन्हा ने हुगली और सेंट टोमे में पुर्तगाली बस्तियों को स्थापित किया। 1534 ई. में बसीन तथा 1535 ई. में दीव पर अधिकार कर लिया।
- बंगाल के शासक महमूद शाह ने पुर्तगालियों को 1536 ई. में चटगाँव और सतगांव में फैक्ट्री खोलने की अनुमति दी। साथ ही, अकबर ने हुगली में तथा शाहजहाँ ने बुन्देल में कारखाना खोलने की अनुमति प्रदान की।
- भारत में प्रथम पादरी फ्रांसिस्को जेवियर का आगमन पुर्तगाली गवर्नर अल्फांसो डिसूजा के समय हुआ। पुर्तगाली पूर्वी एशियाई देशों से व्यापार हेतु नागपट्टनम बंदरगाह का प्रयोग करते थे। साथ ही मसुलीपट्टनम तथा पुलीकट शहरों से वस्त्रों का निर्यात किया जाता था।
- पुर्तगालियों ने कार्टेज-आर्मेडा-काफिला पद्धति का प्रयोग किया जिसके अंतर्गत हिंद महासागर का प्रयोग करने वाले प्रत्येक जहाज को शुल्क अदा करना होता था। मुगल शासक अकबर को भी पुर्तगालियों से कार्टेज लेना पड़ा। 1632 ई. में शाहजहाँ ने हुगली को पुर्तगालियों के अधिकार से छीना तथा 1686 ई. में चटगाँव से समुद्री लुटेरों का औरंगजेब ने सफाया किया।
- भारत में तम्बाकू, लाल मिर्च की खेती, जहाज निर्माण तथा प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत पुर्तगालियों ने की। 1556 ई. में गोवा में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की गई तथा भारत में गोथिक स्थापत्य कला पुर्तगालियों की ही देन है।
क्र.सं. | यूरोपीय कम्पनियाँ | स्थापना वर्ष |
---|---|---|
1. | एस्तादो द इंडिया (पुर्तगाल) | 1498 ई. |
2. | ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी (ग्रेट ब्रिटेन) | 1599 ई. |
3. | वेरिंगदे ओस्टइन्दिशे कम्पनी (डच) | 1602 ई. |
4. | डेन ईस्ट इंडिया कम्पनी (डेनमार्क ) | 1616 ई. |
5. | कम्पनी देस इण्डस ओरियंटोल्स (फ्रांस) | 1664 ई. |
डचों का भारत आगमन (Arrival of the Dutch in India)
- नीदरलैंड या हॉलैंड के निवासी पुर्तगालियों के पश्चात् भारत आए। 1596 ई. में कारनेलिस डी होउटमैन भारत आने वाला प्रथम डच नागरिक था।
- 1602 ई. में डच ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना वेरिंगदे ओस्टइन्दिशे कम्पनी (Vereenigde Oast-In- dische Compagnie) के नाम से किया गया। भारत में प्रथम डच फैक्ट्री की स्थापना मसुलीपट्टनम में 1605 ई. में की गई। भारत को वस्त्र निर्यात का केंद्र बनाने का श्रेय डचों को ही जाता है।
- 1759 ई. में बेदरा के युद्ध में अंग्रेज़ो द्वारा डचों को पारजित कर दिया गया। इस युद्ध में अंग्रेज़ी सेना का नेतृत्व क्लाइव द्वारा किया गया। डचों की पराजय का मुख्य कारण नौ सैनिक शक्ति का कमजोर होना था।
अंग्रेज़ों का भारत आगमन (Arrival of the British in India)
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना के साथ ही इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम द्वारा 1600 ई. में एक चार्टर के माध्यम से कम्पनी को 15 वर्षों के लिये पूर्वी देशों से व्यापार करने का एकाधिकार पत्र प्रदान किया गया। इसके पश्चात् 1609 ई. में नवीन चार्टर के द्वारा इस विशेषाधिकार को अनिश्चितकाल के लिये बढ़ा दिया गया।
- 1608 ई. में ब्रिटेन के सम्राट जेम्स प्रथम ने भारत में व्यापारिक कोठियों को स्थापित करने के उद्देश्य से केप्टन विलियम हॉकिन्स को जहाँगीर के दरबार में भेजा तथा अंग्रेज़ों को स्थायी कारखाना स्थापित करने की अनुमति 1613 ई. में प्रदान की गई जिसके फलस्वरूप सूरत में स्थायी कारखाना स्थापित किया गया।
- इसी दौरान 1611 ई. में अंग्रेजों ने मसुलीपट्टनम में व्यापारिक कोठी की स्थापना की। जहाँगीर के समय 1615 ई. में आए सर टॉमस रो को मुगल साम्राज्य के सभी भागों में व्यापारिक कोठियों की स्थापना का अधिकार पत्र प्रदान कर दिया गया था।
- 1640 ई. में अंग्रेजों ने विजयनगर शासक के प्रतिनिधि चंद्रगिरी के राजा से मद्रास को हड़प लिया तथा वहां फोर्ट सेंट जार्ज का निर्माण करवा कर किलेबंदी की गई।
- अंग्रेजों ने बंगाल में अपनी प्रथम कोठी की स्थापना 1651 ई. में हुगली में शाहशुजा की अनुमति से की। इसी वर्ष शाहशुजा ने 3000 रुपए वार्षिक में अंग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा में मुक्त व्यापार की अनुमति भी प्रदान कर दी।
- 1661 ई. में इंग्लैंड के सम्राट चार्ल्स द्वितीय का विवाह पुर्तगाली राजकुमारी केथरीन से हुआ जिसके परिणामस्वरूप चार्ल्स को बम्बई पुर्तगाल ने दहेज के रूप में भेंट किया।
- 1686 ई. में अंग्रेजों द्वारा हुगली को लूटने पर मुगल सेनाओं से संघर्ष हुआ जिससे कम्पनी को सूरत, मसुलीपट्टनम तथा विशाखापत्तनम आदि से अपने अधिकार खोने पड़े, लेकिन अंग्रेजों द्वारा माफी मांगने पर औरंगजेब ने हर्जाना लेकर पुनः व्यापार करने का अधिकार प्रदान कर दिया। 1691 ई. में शाही फरमान के द्वारा औरंगजेब ने 3000 रुपए वार्षिक राशि के बदले बंगाल में कम्पनी को चुंगी रहित व्यापार की अनुमति दे दी।
- इसके आलावा 1698 ई. में कम्पनी को सुतनाटी, कालीघाट एवं गोविंदपुर की जमीदारी प्राप्त हो गई जहाँ जॉब चारनाक ने कलकत्ता नगर की स्थापना की तथा कम्पनी द्वारा कलकत्ता में फोर्ट विलियम किले का भी निर्माण करवाया गया। इसके पश्चात् फर्रुखसियर द्वारा भी कम्पनी को व्यापारिक रियायतें प्रदान की गई, जिसके लिये 1717 ई. का मैग्नाकार्ता जारी किया गया।
भारत में फ्रांसीसी शक्ति का आगमन (Arrival of the French in India)
- भारत में अन्य यूरोपीय कम्पनियों की तुलना में सबसे अंत में फ्रांसीसियों ने प्रवेश किया। 1664 ई. में फ्रांसीसी कम्पनी (The compaginie des indes orientales) की स्थापना लुई चौदहवें के शासनकाल में फ्रांसीसी मंत्री कोल्बर्ट द्वारा की गई, जो एक सरकारी कम्पनी थी।
- 1668 ई. में सूरत में फ्रांस ने अपनी प्रथम कोठी की स्थापना की। इसके पश्चात् 1669 ई. में फ्रांसीसियों ने भारत के पूर्वी तट पर मसुलीपट्टनम में अपना कारखाना स्थापित किया।
- पांडिचेरी नगर की स्थापना फ्रांस के फ्रेंकोइस मार्टिन द्वारा 1673 ई. में की गई, जिसे डचों ने 1693 ई. में अपने अधिकार में ले लिया किंतु 1697 ई. के रिजविक समझोते के अनुसार पुनः फ्रांस को दे दिया गया। इसी प्रकार 1690 ई. में मुगल गवर्नर से चंद्रनगर फ्रांसीसी कम्पनी को प्राप्त हुआ।
- 1742 ई. तक फ्रांसीसियों ने अपनी गतिविधियों को व्यापार तक ही सीमित रखा लेकिन 1742 ई. के पश्चात् फ्रांसीसी कम्पनी ने भारत में साम्राज्य विस्तार की योजना को बनाना शुरू किया। इसी का परिणाम था कि 1742 ई. में डूप्ले को फ्रांसीसी गवर्नर के रूप में नियुक्त करके भारत भेजा गया। डुप्ले ने ही भारत में सहायक संधि प्रथा को पहली बार स्थापित किया।
- 18वीं शताब्दी में फ्रांस की व्यापारिक तथा राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं ने अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य कर्नाटक युद्ध की नींव रखने का काम किया, जिसमे 1760 ई. में हुए वांडीवाश के युद्ध में फ्रांसीसियों की भारत में निर्णायक हार हुई।
भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन PDF
नीचे आपको भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन PDF दिया गया है इस पीडीएफ़ मे पुर्तगालियों का भारत आगमन, डचों का भारत आगमन, अंग्रेज़ों का भारत आगमन एवं भारत में फ्रांसीसी शक्ति का आगमन से संबंधित तथ्यों की जानकारी दिया गया है ।
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