इस Notes का अध्ययन करने के उपरांत ‘ ब्रिटिशकालीन स्थानीय स्वशासन तथा उससे सम्बंधित विभिन्न पहलुओं’ पर आपकी समझ विकसित होगी। जैसे – पृष्ठभूमि, स्थानीय स्वशासन का विकास, लार्ड मेयो के काल में स्थानीय स्वशासन,लार्ड रिपन के काल में स्थानीय स्वशासन, एवं और भी कई सारे प्रमुख विंदु ।
पृष्ठभूमि (Background)
- भारत में स्थानीय स्वशासन का अस्तित्व प्राचीन काल से ही रहा है। यहाँ सभ्यता के प्रारम्भ से ही सामाजिक जीवन के दो स्थानीय संगठन रहे हैं- ग्राम एवं नगर।
- स्थानीय स्वशासन की शुरुआत सिंधु घाटी सभ्यता एवं वैदिक युग से ही देखी जा सकती है। सुव्यवस्थित नगरीय नियोजन के द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता के नगरीय प्रशासन का उल्लेख मिलता है।
- मौर्यकाल में स्थानीय स्वशासन अत्यधिक विकसित था। अर्थशास्त्र के अनुसार शासन की सुविधा के लिये प्रांतों को उपविभागों में विभाजित किया गया था जैसे- जनपद, द्रोण मुख, खार्वटिक आदि।
- मेगास्थनिज के अनुसार, नगर में सुचारु प्रबंध के लिये पाँच-पाँच सदस्यों की छः समितियाँ थी। जैसे- शिल्पकला, वैदेशिक जनसंस्था, व्यापार-वाणिज्य, वस्तुनिरीक्षण तथा कर समिति।
- गुप्तकाल एवं मध्यकाल में भी स्थानीय प्रशासन का उल्लेख प्राप्त होता है। चोल युग स्थानीय स्वशासन का सर्वश्रेष्ठ काल माना जाता है।
- मुगलकाल में अबुल फजल कृत ‘आईन-ए-अकबरी’ में उस समय के ग्रामीण एवं नगरीय जीवन के प्रशासन की जानकारी मिलती है।
स्थानीय स्वशासन का विकास (Evolution of Local Self-Government)
- 1687 ई. : मद्रास नगर निगम की स्थापना
- 1726 ई. : बम्बई एवं कलकत्ता नगर निगमों की स्थापना
- चार्टर अधिनियम, 1793 : स्थानीय संस्थाओं को वैधानिक मान्यता
- बंगाल अधिनियम, 1842 : प्रेसीडेंसी नगरों से बाहर स्थानीय संस्थाओं की समस्या।
- 1869 का अधिनियम : मालगुजारी पर उपकर लगाने तथा समिति का निर्माण
- लार्ड मेयो का प्रस्ताव, 1870 : वित्तीय विकेंद्रण
- लार्ड रिपन का प्रस्ताव, 1882 : रिपन- स्थानीय स्वशासन का जनक
– ग्रामीण इकाइयों के उन्नयन पर बल - विकेंद्रीकरण आयोग की रिपोर्ट, 1908 : स्थानीय स्वशासन के कई क्षेत्रों में सिफारिशें
- भारत सरकार अधिनियम, 1919 : स्थानीय स्वशासन, प्रांतीय सरकार के अधीन इकाई
- भारत सरकार अधिनियम, 1935 : स्थानीय स्वशासन के विकास को प्रोत्साहन
- स्वतंत्रता पश्चात : 73वें, 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा सन् 1993 ई. में स्थानीय इकाइयाँ स्थापित की गई।
- भारत में अंग्रेज़ों द्वारा स्थानीय स्वशासी संस्थाएँ प्रेसीडेंसी नगरों में स्थापित की गई। बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने सन् 1687 में मद्रास नगर निगम बनाने की स्वीकृति प्रदान की। प्रायः निगम में एक मेयर तथा 60 सदस्य होते थे।
- सन् 1726 में बम्बई और कलकत्ता नगर निगमों की स्थापना की गई। इसका मुख्य कार्य शहर की सफाई व स्वास्थ्य की देखभाल करना था।
- सन् 1793 के चार्टर अधिनियम के तहत इन स्थानीय संस्थाओं को वैधानिक आधार प्राप्त हुआ। गवर्नर जनरल को प्रेसीडेंसी नगरों में शांति अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार मिला।
- बंगाल अधिनियम, 1842 के द्वारा प्रेसीडेंसी नगरों से बाहर स्थानीय स्वशासी संस्थाओं की स्थापना हुई। तदुपरांत 1850 ई. में यह अधिनियम सभी ब्रिटिश प्रांतों में लागू कर दिया गया। साथ ही, नगरपालिकाओं को अप्रत्यक्ष कर लगाने का अधिकार सौंप दिया गया।
- सन् 1869 में एक अधिनियम के तहत मालगुजारी पर उपकर लगाने तथा उसका खर्च एक अलग कमेटी द्वारा किये जाने का प्रावधान था। यह स्थानीय स्वशान की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था। यह व्यवस्था बम्बई में शुरू हुई तथा इसके सफल होने के कारण सन् 1870 में अन्य प्रांतों के जिलों में भी इस व्यवस्था को अपनाया गया। इन कमेटी का अध्यक्ष जिलाधिकारी होता था और ये सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा आदि की व्यवस्था के लिये उत्तरदायी थीं।
लार्ड मेयो के काल में स्थानीय स्वशासन (Local Self-Government During Lord Mayo’s Period)
- ब्रिटिश भारत में भारतीय परिषद अधिनियम, 1868 द्वारा ‘वैधानिक विकेंद्रीकरण’ की नीति अपनाई गई और इसी क्रम में 1870 ई. में लार्ड मेयो ने ‘वित्तीय विकेंद्रीकरण’ का प्रस्ताव रखा।
- इस प्रस्ताव द्वारा कुछ विभागों का (जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कें तथा अन्य सेवाएँ शामिल थीं) नियंत्रण प्रांतीय सरकारों को सौंप दिया गया। इसी के फलस्वरूप ‘स्थानीय वित्त’ की अवधारणा विकसित हुई।
- इस प्रस्ताव में स्थानीय स्वशासन को मजबूत बनाने पर जोर दिया गया अतएव नगरपालिकाओं के विकास का समर्थन भी किया गया।
- 1871 ई. के ‘बंगाल जिला बोर्ड उपकर अधिनियम’ द्वारा बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन लाने का पहली बार प्रयत्न किया गया। आगे चलकर, इसी प्रकार के अधिनियम पंजाब, मद्रास तथा उत्तर-पश्चिमी प्रांत में भी पारित किये गए।
- इस प्रकार लार्ड मेयो ने वित्तीय विकेंद्रीकरण के द्वारा स्थानीय स्वशासन के विकास की आधारशिला रखी।
लार्ड रिपन के काल में स्थानीय स्वशासन (Local Self-Government During Lord Ripon’s Period)
- लार्ड रिपन को स्थानीय स्वशासन का जनक कहा जाता है।
- 1882 ई में एक प्रस्ताव के माध्यम से लार्ड रिपन ने प्रांतीय सरकारों को आदेश दिया कि लार्ड मेयो के वित्तीय विकेंद्रीकरण के अनुरूप वित्तीय साधनों का सर्वेक्षण किया जाए।
प्रस्ताव के प्रमुख बिंदु
- इस प्रस्ताव के माध्यम से स्थानीय इकाइयों को निश्चित कार्य व आय के लिये साधन प्रदान किये गए।
- ग्रामीण क्षेत्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु तालुका बोर्ड अथवा जिला बोर्ड बनाए गए।
- इसमें जनता द्वारा निर्वाचित गैर-सरकारी सदस्यों का बहुमत होता था।
- सरकारी हस्तक्षेप न्यूनतम था।
उपर्युक्त व्यवस्थाओं के बावजूद नौकरशाही भारतीयों को स्थानीय शासन के योग्य नहीं समझती थी। साथ ही स्थानीय संस्थाओं को ऋण लेने, नए कर लगाने, सम्पत्ति के हस्तांतरण आदि विषयों पर सरकार की अनुमति लेना आवश्यक था।
विकेंद्रीकरण आयोग की रिपोर्ट, 1908 (Decentralization Commission Report, 1908)
इस आयोग ने स्थानीय स्वशासन के कई क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण सिफारिशें की जो निम्नलिखित हैं-
- स्थानय संस्थाओं के सम्मुख धन के अभाव की समस्या ही मुख्य बाधा है। अतएव सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिये।
- ग्राम पंचायतों तथा उपजिला बोडों के विकास को प्रमुख वरीयता देनी चाहिये।
- पंचायतों को आय के पर्याप्त उपलब्ध स्रोत होने चाहिये।
- जिलाधिकारियों का पंचायत के काम में न्यूनतम हस्तक्षेप होना चाहिये।
उपर्युक्त सिफारिशों के अलावा, आयोग ने प्रत्येक तालुका (तहसील) में उप-जिला बोर्ड की स्थापना पर बल दिया।
आयोग द्वारा प्रस्तुत किये गए सुझावों का सरकार ने विशेष अमल नहीं किया। तदुपरांत आयोग की सिफारिशों को सीमित रूप में मई, 1918 के प्रस्ताव द्वारा लागू किया गया।
भारत सरकार अधिनियम, 1919 के अंतर्गत स्थानीय स्वशासन (Local Self-Government under Government of India Act, 1919)
- भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत स्थानीय स्वशासन एक हस्तानांतरित विषय बन गया, जिसका नियंत्रण प्रांतीय सरकार के अधीन हो गया।
- इस प्रकार केंद्र सरकार ने स्थानीय स्वशासन के विषय में प्रांतीय सरकार को आदेश देना बंद कर दिया। अतएव प्रांतीय सरकारों को अपनी आवश्यकतानुसार स्थानीय स्वशासन को विकसित करने की अनुमति मिल गई।
- साइमन आयोग ने अपने रिपोर्ट में स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने का सुझाव दिया।
भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अंतर्गत स्थानीय स्वशासन (Local Self-Government under Government of India Act, 1935)
- इस अधिनियम के अंतर्गत स्थानीय स्वशासन के विकास को और अधिक गति मिली क्योंकि अब स्थानीय संस्थाओं के कार्यभार में वृद्धि कर दी गई थी। परंतु कर लगाने की शक्ति यथावत बनी रही।
- वित्त का नियंत्रण अब लोकप्रिय सरकारें करने लगीं। अतएव वे इन स्थानीय संस्थाओं को और अधिक धन उपलब्ध करवा सकती थी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् स्थानीय स्वशासन (Local Self-Government after Independence)
- ध्यातव्य है कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गाँधीजी ने भी सत्ता के विकेंद्रीकरण पर अत्यधिक ज़ोर दिया था। उनका कहना था कि ‘ग्राम पंचायतों को मजबूत बनाना सत्ता के विकेंद्रीकरण का महत्त्वपूर्ण साधन है।’
- जब भारतीय संविधान तैयार किया गया तो स्थानीय एवं शासन का विषय राज्यों को सौंपा गया। साथ ही इसे अनुच्छेद 40 के तहत राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के प्रावधान में भी शामिल किया गया।
- वर्ष 1993 में संविधान के 73वें एवं 74वें संशोधन के द्वारा स्थानीय संस्थाओं के गठन की संवैधानिक स्वीकृति प्रदान की गई। साथ ही शासन में जनभागीदारी को बढ़ाने तथा सत्ता के विकेंद्रीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु स्थानीय संस्थाओं के गठन को अनिवार्य कर दिया गया।