असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) GK Notes and PDF

आज के इस Notes मे हम असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) GK Facts के बारे मे जानकारी प्राप्त करेंगे ।

इस Notes का अध्ययन करने के उपरांत ‘ असहयोग आंदोलन तथा उससे सम्बंधित विभिन्न पहलुओं’ पर आपकी समझ विकसित होगी। जैसे – असहयोग आंदोलन के कारण, असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम, असहयोग आंदोलन का घटनाक्रम, असहयोग आंदोलन के परिणाम / उपलब्धियाँ, असहयोग आंदोलन की वापसी एवं असहयोग आंदोलन की समीक्षा अथवा और भी कई सारे प्रमुख विंदु ।

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असहयोग आंदोलन के कारण (Causes of Non-Cooperation Movement)

  • भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार को इस उम्मीद पर प्रथम विश्वयुद्ध में समर्थन दिया था कि युद्ध समाप्ति के बाद भारत को स्वशासन प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी, परंतु आशा के विपरित भारत को रॉलेट एक्ट तथा जलियांवाला बाग हत्याकांड जैसी दमनात्मक कार्यवाही मिली। ब्रिटिश शासन के कठोर रुख के कारण भारतीय जनमानस का असंतोष चरम पर जा पहुँचा।
  • मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली लागू की गई, जिसके अंतर्गत निर्वाचित सरकार को बहुत की कम अधिकार दिये गए थे, फलतः भारतीय नेतृत्व निराश और असंतुष्ट था।
  • तुर्की के खलीफा के साथ किये गए दुर्व्यवहार के कारण भारतीय मुस्लिम असंतुष्ट थे और उन्होंने खलीफा के सम्मान को पुनर्स्थापित करने के लिये खिलाफत आंदोलन शुरू किया था। गांधीजी ने इसे मुस्लिम समाज को राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्यधारा में शामिल करने का अवसर जान एक राष्ट्रव्यापी असहयोग आंदोलन की शुरुआत की।
  • प्रथम विश्वयुद्ध के समाप्त होने के पश्चात् बढ़ती महँगाई और बेरोज़गारी जैसे आर्थिक मुद्दों ने मजदूर वर्ग, दस्तकारों तथा मध्यम वर्ग सभी को उद्वेलित किया।

असहयोग आंदोलन की शुरुआत (Beginning of Non Cooperation Movement)

  • असहयोग आंदोलन शुरू करने से पूर्व ही जहाँ गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई ‘केसर ए हिंद’ की उपाधि लौटा दी, वहीं जमनालाल बजाज ने ‘राय बहादुर’ की उपाधि लौटा दी।
  • 1920 ई. में गांधीजी ने खिलाफत समिति के समक्ष ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अहिंसक असहयोग आंदोलन शुरू करने का प्रस्ताव रखा।
  • जलियांवाला बाग हत्याकांड, खलीफा के प्रति अपमानजनक व्यवहार एवं स्वराज के विषय पर गांधीजी ने कांग्रेस को असहयोग आंदोलन करने के लिये प्रेरित किया।
  • असहयोग आंदोलन की औपचारिक शुरुआत । अगस्त, 1920 को हुई। ध्यातव्य है कि इसी दिन बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु भी हो गई। शुरुआत में मध्यम वर्ग की भागीदारी पर बल दिया गया। एक करोड़ रुपए ‘तिलक स्वराज कोष’ के अंतर्गत जमा करने तथा इतने ही स्वयंसेवकों को भर्ती करने का लक्ष्य रखा गया।
  • आंदोलन से सम्बंधित कार्यक्रमों की रूपरेखा निश्चित करने के लिये कलकत्ता में कांग्रेस कार्यसमिति का अधिवेशन किया गया। जिसमें गांधीजी ने असहयोग प्रस्ताव प्रस्तुत किया। लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में 1920 ई. में कलकत्ता में एक विशेष अधिवेशन में असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया।
  • असहयोग प्रस्ताव का विरोध एनी बेसेंट, विपिनचंद्र पाल, मदनमोहन मालवीय, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, शंकरन नायर, देशबंधु चितरंजन दास, मुहम्मद अली जिन्ना तथा सर नारायण चंद्रावरकर ने किया। ध्यातव्य है कि सी.आर. दास का असहयोग आंदोलन को लेकर विरोध विधान परिषदों के बहिष्कार के कारण था, किंतु मोतीलाल नेहरू एवं अली बंधुओं के समर्थन से यह प्रस्ताव पारित किया गया। साथ ही कुछ समय पश्चात् लाला लाजपतराय एवं चितरंजन दास ने भी असहयोग प्रस्ताव से सम्बंधित विरोध वापस ले लिया। एनी बेसेंट, विपिनचंद्र पाल, मुहम्मद अली जिन्ना, जी.एस.खपाउँ आदि नेताओं ने कांग्रेस से असंतुष्ट होकर त्यागपत्र दे दिया।
  • 1920 ई. के नागपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। यह प्रस्ताव सी.आर. दास ने ही इस सम्मलेन में प्रस्तुत किया, जहाँ गांधीजी ने एक वर्ष के भीतर स्वराज के लक्ष्य को जनता के समक्ष प्रस्तुत किया। इसी अधिवेशन में जन आंदोलन के संविधान से इतर तरीके अपनाने की भी बात कही गई थी। यही कारण था कि क्रांतिकारी संगठनों ने भी इस असहयोग आंदोलन को समर्थन प्रदान कर दिया।
  • असहयोग आंदोलन ने संवैधानिक और वैधानिक तरीकों से स्वशासन की प्राप्ति के स्थान पर अहिंसक और उचित तरीकों से स्वराज की प्राप्ति के उद्देश्य को प्रस्तुत किया।

असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम (Programmes of Non-Cooperation Movement)

असहयोग सम्बंधी कार्यक्रम (Programmes related to Non-Cooperation)

  • ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई उपाधियों एवं प्रशस्ति पत्रों का त्याग करना।
  • सरकारी शिक्षा का विरोध करने हेतु सरकारी विद्यालयों, महाविद्यालयों का बहिष्कार करना तथा राष्ट्रीय शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करना।
  • सरकारी नौकरियों से त्यागपत्र देना।
  • विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करना।
  • वकीलों द्वारा ब्रिटिश न्याय व्यवस्था का बहिष्कार करना।
  • सरकारी एवं अर्द्ध-सरकारी उत्सवों का बहिष्कार करना।
  • आवश्यकता पड़ने पर सविनय अवज्ञा का प्रयोग करते हुए कर अदा न करना।

रचनात्मक कार्यक्रम (Constructive Programmes)

  • स्वदेशी को प्रोत्साहन देना अर्थात् स्वदेशी वस्तुओं, विद्यालयों, संस्थाओं को बढ़ावा देना।
  • चरखा, खादी एवं कताई-बुनाई जैसी वस्तुओं को बढ़ावा देना।
  • स्थानीय विवादों का निबटारा करने के लिये पंचायती अदालतों की स्थापना करना।
  • हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना।
  • छुआछूत, मद्यपान जैसी बुराइयों को समाप्त करना तथा अहिंसा के पालन को बढ़ावा देना।
  • सभी वयस्कों को कांग्रेस की सदस्यता प्रदान करना।
  • 300 सदस्यों वाली अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का गठन।
  • जिला, तालुका एवं ग्राम स्तरों पर कांग्रेस समितियों का एक संस्तर बनाना तथा भाषायी आधार पर प्रांतीय कांग्रेस समितियों का पुनर्गठन।

असहयोग आंदोलन का घटनाक्रम (Events of Non-cooperation Movement)

  • असहयोग आंदोलन को पश्चिमी भारत, उत्तरी भारत एवं बंगाल में अभूतपूर्व सफलता मिली।
  • गांधी ने खिलाफत आंदोलन से जुड़े नेता अली बंधुओं के साथ राष्ट्रव्यापी जनसम्पर्क अभियान चलाया। असहयोग आंदोलन के समय कांग्रेस को कई मुस्लिम नेताओं, जैसे- मोहम्मद अली, डॉ. अंसारी, शौकत अली तथा मौलाना अबुल कलाम आज़ाद आदि का समर्थन प्राप्त हुआ।
  • बंगाल, पंजाब में शैक्षणिक बहिष्कार को समर्थन मिला, जबकि मद्रास में इस कार्यक्रम को सफलता नहीं मिली। राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की गई, जैसे- काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, महाराष्ट्र विद्यापीठ, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय आदि। कलकत्ता में नेशनल कॉलेज को स्थापित किया गया, जिसके प्रधानाचार्य सुभाषचंद्र बोस बने।
  • न्यायालयों के बहिष्कार में सी. आर. दास, मोतीलाल नेहरू, जयकर, सी. राजगोपालाचारी, राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, विट्ठलभाई पटेल, वल्लभभाई पटेल तथा आसफ अली आदि वकीलों ने विशेष भूमिका निभाई।
  • विदेशी कपड़ों की होली जलाकर इन कपड़ों का बहिष्कार किया गया। यही कारण है कि 1920-21 में जहाँ 102 करोड़ रुपए मूल्य के विदेशी कपड़ों का आयात हुआ, वहीं 1921-22 में यह घटकर 57 करोड़ रुपए ही रह गया।
  • ताड़ी एवं शराब की दुकानों पर महिलाओं का धरना कार्यक्रम अत्यंत लोकप्रिय हुआ। ध्यातव्य है कि यह मूल कार्यक्रम में सम्मिलित नहीं था।
  • 1921 ई. में तिलक स्वराज फंड की स्थापना की गई, जिसमें में एक करोड़ रुपए एकत्रित करने का लक्ष्य रखा गया। छः माह के भीतर ही इसमें । करोड़ रुपए एकत्रित हो गए।
  • बम्बई कांग्रेस अधिवेशन में विदेशी कपड़ों के बहिष्कार एवं प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन के बहिष्कार का निर्णय लिया गया। नवम्बर 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन के दौरान हुई देशव्यापी हड़तालें एवं हिंसक झड़पों की घटनाओं गांधीजी को व्यथित कर दिया। उन्होंने कहा कि स्वराज ने मेरे नथुने में बदबू पैदा कर दी।
  • गांधीजी द्वारा स्वयंसेवकों से जेल भरने का आह्वान किया गया।
  • अवध में किसान आंदोलनों को गति मिली एवं असम में चाय बागान के मज़दूरों ने हड़ताल की।
  • बंगाल के राष्ट्रवादी नेता जे.एम. सेनगुप्त ने मिदनापुर में एक अंग्रेज़ जमींदारी कम्पनी के विरुद्ध काश्तकारों की हड़ताल का नेतृत्व किया।
  • पंजाब में अकालियों ने भ्रष्ट महंतों का गुरुद्वारों पर कब्ज़े के विरुद्ध एवं आंध्र में वन कानूनों के विरुद्ध आंदोलन किया।
  • केरल के मालाबार में असहयोग एवं खिलाफत नेताओं ने खेतिहर मुसलमानों को उनके भू-स्वामियों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिये प्रेरित किया।
  • राजस्थान में भी किसानों एवं आदिवासियों ने आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया।
  • 1921 ई. में नए वायसराय बनकर भारत आए लार्ड रीडिंग ने गांधीजी से कहा कि वे अली बंधुओं को अपने भाषणों में हिंसा भड़काने वाली बातें करने से मना करें। इसके माध्यम से सरकार गांधीजी एवं अली बंधुओं में फुट डालने के लिये प्रयासरत थी, लेकिन गांधीजी एवं लार्ड रीडिंग के मध्य वार्ता असफल हुई।
  • 1921 ई. के अंत होते-होते ब्रिटिश सरकार के दमनात्मक कार्यवाही तेज़ हो गई। गांधीजी को छोड़कर सभी प्रमुख कांग्रेसी नेताओं, जैसे-मोहम्मद अली जिन्ना, मोतीलाल नेहरू, सरदार पटेल, मुहम्मद अली, चितरंजन दास, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आज़ाद एवं राजगोपालाचारी आदि को गिरफ्तार कर लिया गया। सबसे पहले गिरफ्तार किये गए नेता मुहम्मद अली थे।
  • कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में आंदोलन की भावी रणनीति तय करने की जिम्मेदारी गांधीजी को सौप दी गई। गांधीजी ने । फरवरी, 1922 को घोषणा की कि यदि सरकार द्वारा 7 दिनों के भीतर राजनीतिक बंदियों को रिहा नहीं किया गया, राजनीतिक स्वतंत्रता बहाल नहीं की गई तथा सरकार के नियंत्रण से प्रेस को मुक्त नहीं किया गया तो देशव्यापी सविनय अवज्ञा आंदोलन को शुरू कर दिया जाएगा।
  • अंततः गांधी ने बारदोली से सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया। किंतु 5 फरवरी, 1922 को गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा नामक स्थान पर पुलिस ने एक राजनीतिक जुलूस पर गोलीबारी कर दी, फलतः जनता ने आक्रोश में आकर पुलिस थाने पर हमला कर दिया। हिंसक झड़प जिसमें 22 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। यह घटना इतिहास में चौरी-चौरा कांड के नाम से जानी जाती है। इस घटना के पश्चात् गांधी ने 12 फरवरी, 1922 को बारदोली के प्रस्ताव को स्थगित कर दिया तथा असहयोग आंदोलन को भी वापस ले लिया।
  • आंदोलन वापसी के पश्चात् गांधीजी ने यंग इंडिया में लिखा कि अंग्रेज़ों को यह जान लेना चाहिये कि 1920 में छिड़ा संघर्ष अंतिम संघर्ष है, निर्णायक संघर्ष है, फैसला होगा, चाहे एक महीना लग जाए या एक साल लग जाए, कई महीने लग जाए या कई साल लग जाए। अंग्रेजी हुकूमत चाहे उतना ही दमन करे, जितना 1857 के विद्रोह के समय किया था, फैसला होकर रहेगा।”
  • मार्च 1922 में गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया तथा न्यायाधीश ब्रूमफिल्ड द्वारा गांधी को असंतोष फैलाने के अपराध के कारण 6 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई, किंतु 5 फरवरी, 1924 को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उन्हें रिहा कर दिया गया।

असहयोग आंदोलन के परिणाम / उपलब्धियाँ (Outcomes/Achievements of Non-Cooperation Movement)

  • एक वर्ष के भीतर स्वराज को प्राप्त करने के लिये चलाया गया यह आंदोलन अपने लक्ष्य प्राप्ति से पूर्व ही समाप्त घोषित कर दिया गया। किंतु, इस आधार पर असहयोग आंदोलन को असफल घोषित नहीं किया जा सकता। साम्राज्यवादी सत्ता के विरुद्ध देश भर के आम जनमानस द्वारा किया गया यह प्रथम राष्ट्रीय आंदोलन था।
  • चौरी-चौरा कांड के पश्चात् असहयोग आंदोलन समाप्त नहीं किया गया, अपितु स्थगित किया गया था। गांधीजी ने इस संदर्भ में कहा था जो संघर्ष 1920 ई. में शुरू हुआ वह निर्णयात्मक संघर्ष है, चाहे वह एक महीना या एक साल चले, कई महीनों या कई वर्षों तक चले।
  • असहयोग आंदोलन में किसान, मज़दूर, दस्तकार, कर्मचारी, व्यापारी, पुरुष-महिला सभी ने भागीदारी की। इस प्रकार, यह स्पष्ट हो गया कि आधुनिक राजनीति के परिचय ने देश को स्वतंत्रता आंदोलन के लिये उत्प्रेरित किया, फलतः देश का प्रत्येक नागरिक संघर्ष करने के लिये तैयार हुआ।
  • मालाबार की घटनाओं के बावजूद इस आंदोलन में मुस्लिम वर्ग की बृहद भागीदारी ने हिंदू-मुस्लिम एकता को प्रस्तुत किया। इस प्रकार, राष्ट्रीय आंदोलन के सामाजिक आधार का विस्तार हुआ तथा साम्प्रदायिक सौहार्द्र को बढ़ावा मिला।
  • असहयोग आंदोलन के दौरान कांग्रेस का भी क्षेत्रीय और वर्गीय विस्तार हुआ। प्रथम राष्ट्रव्यापी आंदोलन होने के कारण कांग्रेस को मुट्ठी भर लोगों के प्रतिनिधित्व करने के आरोप से मुक्ति मिली।
  • इस आंदोलन ने आम जनता द्वारा दमन एवं संघर्ष का सामना करने की क्षमता को प्रदर्शित किया। भारतीय जनता के त्याग एवं बलिदान ने यह स्पष्ट कर दिया कि देश की आजादी की चाह शिक्षित लोगों में ही नहीं अपितु निरक्षर एवं ग्रामीण जनता में भी थी।
  • असहयोग आंदोलन में निहित बहिष्कार, असहयोग एवं सविनय अवज्ञा की रणनीतियों ने आम जनमानस में आत्मविश्वास को जागृत किया तथा ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संघर्ष को उत्प्रेरित किया, फलतः विदेशी शासन का भय आम जनमानस से जाता रहा।

असहयोग आंदोलन की वापसी (Withdrawal of Non-Cooperation Movement)

आंदोलन वापसी के विपक्ष में तर्क (Arguments Against the Withdrawal of Movement)

  • असहयोग आंदोलन की अकस्मात वापसी की आलोचना करते हुए रजनीपाम दत्त जैसे- इतिहासकारों ने गांधी को बुजुर्वा वर्ग के हितों का पोषक बताया। आंदोलन की वापसी के संदर्भ में विपक्ष में दिये गए तर्क इस प्रकार हैं-
    • > इन इतिहासकारों के अनुसार, आंदोलन की वापसी चौरी-चौरा कांड की हिंसा के कारण नहीं, अपितु अमीर पूंजीपति वर्ग के हितों की सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में उठाया गया कदम था, क्योंकि गांधीजी को यह लगने लगा था कि भारतीय जनता अब अमीर शोषकों के विरुद्ध होने वाले जुझारू संघर्ष के लिये तैयार हो रही है
    • > गांधीजी को यह लग रहा था कि कहीं आंदोलन का नेतृत्व उनके हाथ से निकलकर लड़ाकू ताकतों के हाथ में न चला जाए। अतः लड़ाकू शक्तियों के बढ़ते प्रभाव के कारण गांधीजी ने आंदोलन वापसी का निर्णय लिया था।
    • > गांधीजी आंदोलन वापसी के माध्यम से ज़मींदारों के हितों का सरंक्षण करना चाहते थे। यही कारण है कि गांधी जी ने बारदोली प्रस्ताव (12 फरवरी, 1922 को सम्पन्न) में किसानों से कर एवं लगान की अदायगी करने को कहा।
  • आंदोलन की अकस्मात वापसी की आलोचना जवाहर लाल नेहरू, सी.आर. दास, मोतीलाल नेहरू लाला लाजपत राय, सुभाष चंद्र बोस जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने की।
  • प्रमुख राष्ट्रवादी नेताओं की प्रतिक्रीया –
    • लाला लाजपत राय ने कहा कि किसी एक स्थान के पाप के कारण सम्पूर्ण देश को दंडित करना कहाँ तक न्यायसंगत है।
    • सुभाष चंद्र बोस ने अपनी पुस्तक ‘द इंडियन स्ट्रगल’ में लिखा कि ऐसे समय में जब जनता का हौसला बहुत ऊँचा था तब पीछे हटने का आदेश देना राष्ट्रीय संकट से कम नहीं था।
    • मोतीलाल नेहरू ने कहा कि यदि कन्याकुमारी के एक गाँव ने अहिंसा का पालन नहीं किया तो इसकी सज़ा हिमालय के एक गाँव को क्यों मिलनी चाहिये।

आंदोलन वापसी के पक्ष में तर्क (Arguments in Favour of the Withdrawal of Movement)

गांधीजी द्वारा आंदोलन वापसी की प्रक्रिया को समस्त राजनीतिक चिंतन एवं रणनीति के परिप्रेक्ष्य में समझने की आवश्यकता है। आंदोलन वापसी के संदर्भ में निम्नलिखित कारणों को प्रस्तुत किया जा सकता है-

  • गांधीजी के अनुसार, हिंसक आंदोलन को सरकार अपने दमनात्मक कदमों से आसानी से समाप्त कर सकती है, जबकि अहिंसक आंदोलन का दमन करना साम्राज्यवादी सत्ता के लिये नैतिक रूप से अनुचित होगा। गांधीजी यह जानते थे कि चौरी-चौरा कांड का बहाना लेकर बारदोली से शुरू किये जा रहे सविनय अवज्ञा आंदोलन को ब्रिटिश सरकार दबा सकती थी, जिससे अवज्ञा आंदोलन शुरू में ही असफल हो जाता।
  • गांधीजी यह जानते थे कि कोई भी जन आंदोलन निरंतर नहीं चल सकता। ध्यातव्य है कि असहयोग आंदोलन एक वर्ष से अधिक समय से चल रहा था, ऐसे में लम्बे समय तक जनमानस पूर्ण ऊर्जा के साथ आंदोलन से नहीं जुड़ सकता था, क्योंकि जनता के दमन सहने एवं बलिदान करने की शक्ति सीमित होती है। यही कारण है कि गांधी ने जनता के मनोबल एवं आत्मविश्वास को बनाए रखने हेतु आंदोलन को वापिस लेने का निश्चय किया।
  • चौरी-चौरा कांड से पूर्व ही असहयोग आंदोलन में जन भागीदारी निरंतर कम होती जा रही थी। छात्रों, वकीलों, व्यवसायों की भागीदारी लगातार घट रही थी। ऐसी स्थिति में आंदोलन के कमज़ोर होने से पूर्व ही गांधी द्वारा आंदोलन को वापस लेना ही तर्कसंगत प्रतीत हुआ।
  • आंदोलन का नेतृत्व लड़ाकू हाथों में जाने की बात का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता है। ध्यातव्य है कि उत्तर प्रदेश एवं मालाबार में किसान आंदोलन पहले ही समाप्त हो चुका था तथा अवध के ग्रामीण इलाकों में कुछ क्षेत्रों में एका आंदोलन चल रहा था। इसके अतिरिक्त, आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में कर अदायगी न करने का आंदोलन तो पहले से ही असहयोग आंदोलन का ही भाग था। ऐसे में यह ज्ञात नहीं हो पाता है कि जुझारू एवं लड़ाकू ताकतें कौन सी थीं।
  • बारदोली में किसानों द्वारा जमींदारों के कर एवं लगान अदा करने के निर्णय को जमींदारों के हितों के सरंक्षण में उठाया गया कदम बताया गया, जबकि गांधी द्वारा जब असहयोग आंदोलन ही वापस ले लिया गया तब किसानों द्वारा कर अदा न करने का तो कोई औचित्य ही नहीं था।
  • एक वर्ष से अधिक समय तक चले इस आंदोलन की मांगों को सरकार द्वारा नहीं माना जा रहा था तथा किसी प्रकार का समझौता करने को ब्रिटिश सरकार तैयार भी नहीं थी। फलतः आंदोलन की कमजोरियाँ उभरकर सामने आती, उससे पूर्व ही चौरी-चौरा कांड ने आंदोलन वापसी का सुअवसर दे दिया।

असहयोग आंदोलन की समीक्षा (Review of Non-Cooperation Movement)

  • तात्कालिक रूप से असहयोग आंदोलन निश्चित रूप से अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में असमर्थ रहा फिर भी इस आंदोलन की राष्ट्रीय आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
  • असहयोग आंदोलन ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत के लोग एकजुट होकर राजनीतिक संघर्ष प्रारम्भ कर सकते हैं।
  • असहयोग आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन को जन आंदोलन का स्वरूप प्रदान किया, जिसमें समाज के प्रत्येक वर्ग ने सक्रिय रूप से भाग लिया ताकि देश को स्वतंत्रता के लक्ष्य की ओर अग्रसर किया जा सके।
  • आंदोलन ने आम जनमानस में साम्राज्यवादी सत्ता के विरुद्ध एकजुट होने की शक्ति प्रदान की तथा निर्भीकता एवं उत्साह का संचार किया।
  • लोगों में विदेशी वस्तुओं के प्रति बहिष्कार तथा स्वदेशी वस्तुओं के प्रति लगाव की प्रवृत्ति जागृत हुई, फलतः कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन मिला।
  • साम्राज्यवादी सत्ता की अजेयता के सिद्धांत को इस आंदोलन ने तोड़ दिया तथा ब्रिटिश शासन की जड़ों को हिला दिया। ब्रिटिश जनमानस को भी भारत में अंग्रेजी सत्ता के औचित्य पर संदेह होने लगा तथा अंग्रेज़ नवयुवक अब भारत में सेवा के लिये आने से कतराने लगे।
  • कांग्रेस द्वारा संचालित रचनात्मक कार्यों ने आम जनता को अपनी वास्तविक शक्ति से परिचित कराया।
  • असहयोग आंदोलन ने मुसलमानों की भागीदारी को बढ़ाया, किंतु आगामी वर्षों में जब साम्प्रदायिकता ने ज़ोर पकड़ा तब राष्ट्रीय आंदोलन में साम्प्रदायिक सौहार्द्र को बनाए न रखा जा सका, फलतः धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक चेतना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कम होती चली गई।

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