इस Notes का अध्ययन करने के उपरांत ‘ ब्रिटिशकालीन प्रशासनिक व्यवस्था का विकास तथा उससे सम्बंधित विभिन्न पहलुओं’ पर आपकी समझ विकसित होगी।
रूपरेखा :
ब्रिटिशकालीन प्रशासनिक व्यवस्था का विकास
- लोक (सिविल) सेवाओं का विकास
- पुलिस प्रशासन
- सैन्य व्यवस्था
- ब्रिटिशकालीन न्यायिक व्यवस्था का विकास
भारतीय प्रशासनिक ढांचा ब्रिटिश शासन के प्रशासनिक प्रणाली की ही विरासत है। भारतीय प्रशासन के विभिन्न अंग, जैसे- सिविल सेवाएँ, पुलिस व्यवस्था आदि का विकास ईस्ट इंडिया कम्पनी के विकास के अनुरूप होता गया तथा सन् 1857 की क्रांति के पश्चात् भी इनमें कई परिवर्तन देखने को मिले।
लोक (सिविल) सेवाओं का विकास (Development of Civil Services)
- लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स और लॉर्ड कार्नवालिस के प्रयासों के फलस्वरूप लोक सेवा का उदय हुआ। वारेन हेस्टिंग्स ने पहली बार लोक सेवा की स्थापना भू-राजस्व एकत्रित करने के उद्देश्य से की।
- भारत में सिविल सेवा के वर्तमान ढांचे की शुरुआत लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा की गई। फरवरी 1786 में बंगाल का गवर्नर जनरल बनने के पश्चात कार्नवालिस ने कम्पनी की समग्र शासन व्यवस्था में सुधार के लिये ‘कार्नवालिस संहिता’ (Cornwallis Code) की रचना की। इसके फलस्वरूप राजस्व प्रशासन एवं न्यायिक प्रशासन को पृथक किया गया।
- कार्नवालिस को भारत में सिविल सेवा का जनक कहा जाता है। उसने कम्पनी द्वारा नियुक्त सिविल सेवकों के निजी व्यापार पर पाबंदी लगाई तथा भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास किया।
- कार्नवालिस के बाद लार्ड वेलेजली ने सिविल सेवा में भर्ती हुए नए सदस्यों को प्रशिक्षण देने के लिये ‘फोर्ट विलियम कॉलेज’ की स्थापना की, किंतु बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स (ब्रिटेन) ने इसे बंद करके 1806 ई. में इंग्लैंड में ‘हैलीबरी कॉलेज’ की स्थापना की, जिसमें चयनित अभ्यर्थियों को 2 वर्ष का प्रशिक्षण देने के बाद भारत भेजा जाता था।
- 1833 ई. के चार्टर एक्ट में घोषणा की गई कि भविष्य में सभी नियुक्तियाँ प्रतियोगी परीक्षा के आधार पर होंगी और इसमें सभी लोग बिना किसी भेदभाव के बैठ सकेंगे, किंतु इस प्रावधान का पूर्णतः पालन नहीं किया गया।
- चार्टर अधिनियम, 1853 ई. द्वारा नियुक्तियों के मामले में डायरेक्टरों का संरक्षण समाप्त हो गया तथा सिविल सेवाओं के लिये प्रतियोगी परीक्षा को सिद्धांततः स्वीकार कर लिया गया, अर्थात् सिविल सेवा से सम्बंधित सभी नियुक्तियाँ एक प्रतियोगी परीक्षा द्वारा की जाने लगीं।
- इस दिशा में 1854 ई. लार्ड मैकाले की अध्यक्षता में सिविल सेवा समिति का गठन किया गया। इस समिति ने भारतीय लोक सेवा के लिये जो सिफारिशें की थीं, वह आज भी भारतीय प्रशासनिक सेवा की आधारशिला हैं। मैकाले ने सिविल सेवकों की भर्ती के लिये योग्यता आधारित परीक्षा का मार्ग प्रशस्त किया।
- लार्ड मैकाले की अनुशंसा तथा सन् 1858 की महारानी की उद्घोषणा की पृष्ठभूमि के फलस्वरूप भारतीय सिविल सेवा अधिनियम, 1861 पारित किया गया। इसके तहत यह व्यवस्था की गई कि प्रशासनिक सेवाओं में भर्ती के लिये अंग्रेजी माध्यम में एक प्रवेश परीक्षा इंग्लैंड में आयोजित की जाएगी, जिसमें ग्रीक एवं लैटिन इत्यादि भाषाओं के विषय शामिल होंगे।
- प्रारम्भ में आयु सीमा 18 से 23 वर्ष के बीच निर्धारित की गई थी।
- 1863 ई. में, सत्येंद्र नाथ टैगोर इंडियन सिविल सर्विस में सफलता प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थे।
- 1878-79 ई. में लार्ड लिटन (तत्कालीन वायसराय) ने वैधानिक सिविल सेवा की योजना प्रस्तुत की। इसके तहत प्रशासन के 1/6 अनुबद्ध पद उच्च कुल के भारतीयों से भरे जाने थे। इन पदों के लिये सर्वप्रथम प्रांतीय सरकारें सिफारिश करेंगी तथा वायसराय एवं भारत सचिव की अनुमति के पश्चात उम्मीदवारों की नियुक्ति की जाएगी। लेकिन यह वैधानिक सिविल सेवा पूर्णतः असफल रही और 8 वर्ष बाद इसे समाप्त कर दिया गया।
- इसी बीच कांग्रेस की स्थापना तथा राष्ट्रीय चेतना के विकास के फलस्वरूप राष्ट्रवादियों द्वारा सिविल सेवा के भारतीयकरण की मांग बढ़ती गई। कांग्रेस द्वारा प्रवेश की आयु में वृद्धि तथा परीक्षाओं के आयोजन ब्रिटेन के साथ भारत में कराने की मांगों के मद्देनजर लार्ड डफरिन ने 1886 ई. में एचिसन कमेटी की नियुक्ति की।
- एचिसन कमेटी (1886 ई.) ने निम्न सिफारिशें प्रस्तुत कीं-
- सिविल सेवाओं को 3 भागों में वर्गीकृत किया जाए:
1. सिविल सेवा (प्रवेश परीक्षा इंग्लैंड में आयोजित)
2. प्रांतीय सिविल सेवा (प्रवेश परीक्षाएँ भारत में आयोजित)
3. अधीनस्थ सिविल सेवा (प्रवेश परीक्षा भारत में आयोजित) - सिविल सेवाओं में आयु सीमा को बढ़ाकर 23 वर्ष कर दिया जाए।
- सिविल सेवाओं को 3 भागों में वर्गीकृत किया जाए:
- ध्यातव्य है कि 1893 ई. में इंग्लैंड के हाउस आफ कॉमन्स में पारित प्रस्ताव के आधार पर सिविल सेवाओं के लिये प्रवेश परीक्षा का आयोजन क्रमशः इंग्लैंड एवं भारत दोनों स्थानों में किया जाएगा, किंतु यह प्रस्ताव कार्यान्वित नहीं हो सका।
- सन् 1912 में सिविल सेवाओं से संदर्भित प्रश्नों पर विचार करने के लिये इसलिंग्टन आयोग का गठन किया गया। इस आयोग ने 1917 ई. में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसकी सिफारिशों को 1919 ई. के भारत शासन अधिनियम में शामिल किया गया।
- मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार के अंतर्गत सिविल सेवा परीक्षा भारत में करवाने की लम्बे समय से चली आ रही मांग को स्वीकार कर लिया गया।
- सन् 1922 से भारतीय सिविल सेवा परीक्षा लंदन के साथ-साथ भारत में भी आयोजित की जाने लगी।
- लोक सेवा में सुधार के लिये पुनः सन् 1924 में लॉर्ड ली की अध्यक्षता में एक रॉयल कमीशन का गठन किया गया, जिसे ली आयोग के रूप में जाना जाता है।
- ली आयोग की सिफारिश पर सन् 1926 में लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।
- सन् 1935 के भारत शासन अधिनियम के तहत केंद्रीय स्तर पर एक अखिल भारतीय सेवा तथा राज्यों/प्रांतों के लिये प्रांतीय लोक सेवा आयोगों की स्थापना का प्रावधान किया गया।
- 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान के लागू होने पर नागरिक/सिविल सेवा को बनाए रखा गया तथा सिविल सेवकों की भर्ती एवं योग्यताओं के निर्धारण के लिये एक संवैधानिक संस्था संघ लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।
ब्रिटिशकालीन लोक सेवा सम्बंधी आयोग
आयोग | गवर्नर जनरल/वायसराय | वर्ष |
---|---|---|
एचिसन आयोग | लॉर्ड डफरिन | 1886 |
इसलिंग्टन आयोग | लॉर्ड हार्डिंग-II | 1912 |
ली आयोग | लॉर्ड रीडिंग | 1924 |
सिविल/लोक सेवाओं के विकास का कालक्रम (Chronology of the Development of Civil Services)
- कार्नवालिस को सिविल सेवा का जनक कहा जाता है।
- वेलेजली द्वारा प्रशिक्षण हेतु कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना।
- 1833 ई. के चार्टर अधिनियम में सुधार हेतु प्रावधान।
- 1853 ई. के चार्टर अधिनियम में प्रतियोगी परीक्षा की शुरुआत।
- मैकाले समिति (1854 ई.) में भारतीय प्रशासनिक सेवा की आधारशिला, योग्यता का निर्धारण।
- लार्ड लिटन के सिविल सेवा सम्बंधी प्रयास।
- 1886 ई. में एचिसन कमेटी।
- 1912 ई. में इसलिंग्टन आयोग।
- 1924 ई. में ली आयोग।
- 1926 ई. में लोक सेवा आयोग की स्थापना।
- सन् 1935 के भारत शासन अधिनियम में प्रावधान।
पुलिस प्रशासन (Police Administration)
- भारत में अंग्रेज़ी कम्पनी का मुख्य उद्देश्य औपनिवेशिक शासन को सुदृढ़ एवं लाभप्रद स्थिति में स्थापित करना था, जिसके लिये एक मज़बूत पुलिस तंत्र की आवश्यकता थी।
- इस दिशा में सर्वप्रथम ध्यान लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा दिया गया। उसने पुरानी पुलिस व्यवस्था का आधुनिकीकरण करते हुए जिले के अंतर्गत कई थानों की स्थापना की। प्रत्येक थाने को एक दारोग के अधीन रखा गया तथा उसकी सहायता के लिये पुलिस कर्मचारी नियुक्त किये गए। प्रत्येक जिले को पुलिस अधीक्षक के अधीन रखा गया जो कि जिले का सबसे बड़ा पुलिस अधिकारी होता था।
- सन् 1829 में विलियम बेंटिक ने पुलिस अधीक्षक के पद को समाप्त कर दिया तथा प्रत्येक जिले के कलेक्टर या जिला अधिकारी (मजिस्ट्रेट) को पुलिस विभाग का प्रमुख बनाया गया। मंडल के राजस्व आयुक्त को पुलिस अधीक्षक के पद का दायित्व सौंपा गया, किंतु इससे जिलाधिकारी कार्यों के अत्यधिक बोझ में उलझ गए, जिससे पुलिस बल का संगठन दुर्बल हो गया।
- पुलिस की संरचना, कार्यप्रणाली और जिला दंडाधिकारी के सम्बंधों की व्याख्या करने के उद्देश्य से 1860 ई. में पुलिस आयोग की नियुक्ति की गई।
- पुलिस आयोग की सिफारिश पर पुलिस अधिनियम, 1861 पारित हुआ। इसके तहत जिलाधिकारियों के सहयोगी के रूप में पुलिस अधीक्षक को नियुक्त किया गया।
- पुलिस महानिदेशक (Inspector-General) पूरे प्रांत के लिये पुलिस विभाग का प्रमुख होता था। जिले से ऊपर रेंज (क्षेत्रीय सीमा) बनाया गया, जिसका प्रमुख पुलिस उपमहानिरीक्षक होता था।
- इस प्रकार, भारतीय पुलिस अधिनियम, 1861 ने प्रांतीय स्तर पर शीर्ष से निम्न स्तर पर पुलिस प्रशासन की एक संरचना निर्मित की, जो आज भी मौजूद है।
- लार्ड कर्जन के समय में पुलिस व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार किये गए। इसके तहत पुलिस अधिकारियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई। फ्रेजर कमीशन (1902 ई. से) की स्थापना की गई। इसी क्रम में सर्वप्रथम गुप्तचर व्यवस्था (CID) की स्थापना हुई।
सैन्य व्यवस्था (Military System)
- भारतीय ब्रिटिश सेना के निर्माण का आरम्भ 1748 ई. में मेजर स्ट्रिंजर लारेंस के नेतृत्व में मद्रास में हुआ, फलतः इन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना का जनक कहा जाता है।
- सेना में भारतीयों को प्राप्त होने वाला सर्वोच्च पद सूबेदार का होता था, अर्थात् सेना में नस्लीय भेदभाव किया जाता था।
- डलहौजी द्वारा बंगाल तोपखाने को कलकत्ता से हटाकर मेरठ लाया गया एवं सेना का स्थाई केंद्र शिमला को बनाया गया। 1857 ई. के विद्रोह के पश्चात् डलहौजी द्वारा भारतीय तत्त्वों को यूरोपीय तत्त्वों से संतुलित करने का प्रयास किया गया। इसके तहत बंगाल की सेना में भारतीय एवं अंग्रेज़ सैनिकों का अनुपात 2:1 तथा मद्रास एवं बम्बई की सेनाओं में यह अनुपात 5:2 रखा गया, साथ ही तोपखाने पर पूर्णतः यूरोपीय सैनिकों का नियंत्रण कर दिया गया।
- सेना को आपस में विभाजित कर संतुलन स्थापित करने हेतु विभिन्न जातियों व क्षेत्रों से सैनिकों की भर्तियाँ की जाने लगीं। इसी क्रम में, सिख, जाट, गोरखा, बलूची व कुमायूँ रेजीमेंट्स की स्थापना की गई।
- 1857 ई. के विद्रोह में बढ़-चढ़कर भाग लेने वाले क्षेत्रों (अवध, बिहार, संयुक्त प्रांत) के सैनिकों को गैर-लड़ाकू घोषित कर उनकी संख्या कम कर दी गई। साथ ही, 1857 ई. के विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों की सहायक रहीं सिख, गोरखा, पठान इत्यादि जातियों को लड़ाकू जातियाँ घोषित कर अधिक संख्या में इनकी भर्ती की गई।
- डलहौजी द्वारा तीन नवीन सैनिक कमांड की स्थापना की गई, साथ ही पंजाब में पृथक सैनिक कमान स्थापित किया गया।
- 1857 ई. के विद्रोह के पश्चात पील कमीशन की सिफारिश पर यूरोपीय सैनिकों की संख्या बढ़ाकर 65,000 तथा भारतीय सैनिकों की संख्या कम कर 1,40,000 कर दी गई। 1885 ई. में यूरोपीय सैनिकों की संख्या 73000 तथा भारतीय सैनिकों की संख्या 1,54,000 निर्धारित कर दी गई।
- 1901 ई. में (लॉर्ड कर्जन के समय में) राजवंशों या प्रतिष्ठित परिवारों की सैनिक शिक्षा के प्रबंध हेतु ‘द इम्पीरियल केडेट कोर’ की स्थापना हुई।
- 1902 ई. में भारतीय सेना के सेनापति लार्ड किचनर ने सेना को दो भागों, यथा-उत्तरी सेना (छावनी-मूरी) तथा दक्षिणी सेना (छावनी पूना) में विभाजित कर दिया। साथ ही, ब्रिटेन के किम्बरले सैनिक स्कूल के तर्ज पर भारतीय सैनिक अधिकारियों की शिक्षा के लिये क्वेटा में एक सैनिक स्कूल की स्थापना की गई। सैनिकों की योग्यता परीक्षण हेतु ‘किचनर टेस्ट’ लागू किया गया।
सेना से सम्बंध कुछ महत्त्वपूर्ण कमीशन
कमीशन | वर्ष | गवर्नर जनरल |
---|---|---|
पील कमीशन | 1860 ई. | लार्ड कैनिंग |
इशर कमीशन | 1920 ई. | चेम्सफोर्ड |
स्किन कमीशन (सैंडहर्स्ट कमीशन) | 1925 ई. | लार्ड रीडिंग |
गैरेन कमीशन | 1932 ई. | लार्ड विलिंग्टन |
चैटफील्ड कमीशन | 1939 ई. | लार्ड लिनलिथगो |
ब्रिटिशकालीन प्रशासनिक व्यवस्था का विकास Notes PDF
नीचे ब्रिटिशकालीन प्रशासनिक व्यवस्था का विकास नोट्स पीडीएफ़ दिया गया है। इस नोट्स का अध्ययन करने के उपरांत “ब्रिटिशकालीन प्रशासनिक व्यवस्था का विकास” से सम्बंधित विभिन्न पहलुओं’ पर आपकी समझ विकसित होगी।