भारत का संवैधानिक विकास GK Notes

आज के इस Notes मे हम भारत का संवैधानिक विकास GK Facts के बारे मे जानकारी प्राप्त करेंगे ।

भारत का संवैधानिक विकास GK

भारत का संवैधानिक विकास
भारत का संवैधानिक विकास
  • 1857 के विद्रोह के बाद इस अधिनियम को पारित किया गया जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर गवर्नरों, क्षेत्रों और राजस्व संबंधी शक्तियाँ ब्रिटिश राजशाही को सौंप दीं।
  • भारत का शासन सीधे महारानी विक्टोरिया के अधीन चला गया। गवर्नर-जनरल का पदनाम बदलकर भारत का वायसराय करते हुए उसे भारत में ब्रिटिश ताज का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि बनाया गया (लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय बने )।
  • ‘कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स’ तथा ‘बोर्ड ऑफ कंट्रोल’ को समाप्त कर उनके अधिकार ब्रिटिश मंत्रिमंडल के एक सदस्य को सौंपे गए। ब्रिटिश मंत्रिमंडल के उस सदस्य को ‘भारत राज्य सचिव’ (Secretary of Sate for India) का पद प्रदान किया गया।
  • भारत राज्य सचिव की सहायता के लिये एक 15 सदस्यीय ‘ भारत परिषद’ का गठन किया गया, जिसके सदस्यों (भारत सचिव सहित) को वेतन भारतीय राजस्व से दिया जाना था।
  • इस 15 सदस्यीय परिषद व भारत सचिव के वेतन को भारतीय राजस्व से देना तय किया गया, लेकिन इसका संचालन लंदन से होता था।
  • भारत सचिव की परिषद एक निगमित निकाय थी जिसे भारत और इंग्लैण्ड में मुकदमा करने का अधिकार था। इस पर भी मुकदमा हो सकता था।
  • भारतीय परिषद अधिनियम, 1861 भारत के संवैधानिक इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना है, क्योंकि इसके द्वारा भारत सरकार की मंत्रिमंडलीय व्यवस्था की नींव रखी गई थी। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे-
  • इस अधिनियम द्वारा कार्यकारी परिषद के सदस्यों की संख्या 4 से बढ़ाकर 5 कर दी गई। ( इसमें तीन सदस्य प्रशासनिक सेवा के होते थे, जिनको भारत में रह कर कार्य करने का 10 वर्ष का अनुभव होना आवश्यक था। शेष 2 सदस्यों में एक को 5 वर्ष का विधि संबंधी अनुभव प्राप्त होना आवश्यक था । )
  • वायसराय की विधानपरिषद में न्यूनतम 6 और अधिकतम 12 अतिरिक्त मनोनीत सदस्यों का प्रावधान किया गया था। उनमें कम-से-कम आधे सदस्यों का गैर-सरकारी होना आवश्यक था, किंतु इनकी शक्तियाँ विधि-निर्माण तक ही सीमित होती थीं।
  • 1862 में लॉर्ड कैनिंग ने तीन भारतीयों- बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधानपरिषद में मनोनीत किया।
  • वायसराय को विधानसभा में भारतीयों के नाम निर्दिष्ट करने की शक्ति प्रदान की गई। यह राज्य सचिव के नियंत्रण तथा निरीक्षण में कार्य करती थी।
  • वायसराय को विशेषाधिकार व आपात स्थिति में अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया।
  • वायसराय को आवश्यक नियम एवं आदेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई, जिसके तहत लॉर्ड कैनिंग ने भारतीय शासन में पहली बार ‘संविभागीय प्रणाली’ (Portfolio System) की शुरुआत की।
  • इस अधिनियम ने बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसियों को कानून बनाने की शक्ति वापस देकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत की।
  • इस एक्ट में सबसे महत्त्वपूर्ण प्रावधान निर्वाचन पद्धति की शुरुआत थी। हालाँकि, इसमें निर्वाचन शब्द का उल्लेख नहीं था । निर्वाचन की पद्धति अप्रत्यक्ष थी और निर्वाचित सदस्यों को मनोनीत की संज्ञा दी जाती थी।
  • विधानमंडल के सदस्यों के अधिकार दो क्षेत्रों में बढ़ा दिये गए । प्रथम बजट में अपने विचार प्रकट करने का अधिकार दिया गया। , दूसरा, सार्वजनिक हित के मामले में 6 दिन पूर्व सूचना देकर उन्हें प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया।

इस अधिनियम द्वारा परिषदों व उनके कार्यक्षेत्रों का अधिक विस्तार किया गया और उन्हें प्रतिनिधिक एवं प्रभावी बनाने के लिये उपाय किये गए। इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-

  • केंद्रीय विधानपरिषद में सरकारी सदस्यों के बहुमत की व्यवस्था रखी गई, तो प्रांतीय विधानपरिषदों में गैर-सरकारी सदस्यों के बहुमत की व्यवस्था थी ।
  • सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में नियुक्त होने वाले प्रथम भारतीय (विधि सदस्य) थे।
  • विधानपरिषद के सदस्यों को अंतिम रूप से बजट स्वीकार करने से पूर्व बजट पर वाद-विवाद करने, तथा प्रस्ताव पारित करने का अधिकार दिया गया।
  • सदस्यों को सार्वजनिक हित से संबंधित विषयों की विवेचना करने और प्रस्ताव पारित करने का अधिकार प्रदान किया गया।
  • इसके तहत जाति, वर्ग, धर्म आदि के आधार पर पृथक् निर्वाचन प्रणाली अपनाई गई, जिसमें प्रेसीडेंसी कॉर्पोरेशन, चेम्बर ऑफ कॉमर्स तथा ज़मींदारों को पृथक् प्रतिनिधित्व दिया गया।
  • पृथक् निर्वाचन के आधार पर मुस्लिमों के लिये सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान, जिसके अंतर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे।
  • गांधी जी ने इस एक्ट को सर्वस्व नाश करने वाला एक्ट कहा ।
  • इसे मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी कहा जाता है जो 1921 से लागू हुआ।
  • केंद्र में द्विसदनीय व्यवस्था लागू की गई, जिसके अंतर्गत केंद्रीय विधानपरिषद और राज्य परिषद का गठन किया गया।
  • केंद्रीय और प्रांतीय विषयों की सूची की पहचान एवं उन्हें पृथक् कर राज्यों पर केंद्रीय नियंत्रण कम किया गया।
  • प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली की शुरुआत हुई। प्रांतीय विषयों को दो भागों में बाँटा गया – आरक्षित और हस्तांतरित । आरक्षित विषय में भूमिकर, वित्त, न्याय, पुलिस, पेंशन, समाचार-पत्र, कारखाने आदि सेवाएँ थीं, जबकि हस्तांतरित सूची में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सार्वजनिक निर्माण विभाग, स्थानीय स्वायत्त शासन जैसे विषय थे।
  • आरक्षित विषयों पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद की सहायता से शासन करता था, जो विधानपरिषद के प्रति उत्तरदायी नहीं थी ।
  • शासन की इस दोहरी व्यवस्था को द्वैध शासन व्यवस्था कहा गया।
  • इस अधिनियम ने पहली बार देश में द्विसदनीय व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था प्रारंभ की।
  • वायसराय की कार्यकारी परिषद के छह सदस्यों में से (कमांडर-इन-चीफ को छोड़कर) तीन सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक था।
  • पृथक् निर्वाचक मंडल का विस्तार किया गया। मुसलमानों के साथ सिख, भारतीय ईसाई, यूरोपियन एवं एंग्लो-इंडियन के लिये भी पृथक् निर्वाचन की व्यवस्था की गई।
  • संपत्ति, कर या शिक्षा के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया गया।
  • पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग करते हुए राज्य विधानसभाओं को अपना बजट स्वयं बनाने के लिये अधिकृत कर दिया गया।
  • इसके तहत एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया, जिसका कार्य दस वर्ष बाद जाँच कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।
  • भारत के वर्तमान संविधान का प्रमुख स्रोत 1935 का अधिनियम है।
  • भारत में सर्वप्रथम संघीय शासन प्रणाली की नींव रखी गई। संघ की दो इकाइयाँ थीं – ब्रिटिश भारतीय प्रांत तथा देशी रियासतें ।
  • संघीय व्यवस्था कभी अस्तित्व में नहीं आई क्योंकि देसी रियासतों ने इसमें शामिल होने से मना कर दिया।
  • अवशिष्ट शक्तियाँ वायसराय को दे दी गईं।
  • इस अधिनियम के तहत केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा किया गया तथा राज्य में द्वैध शासन समाप्त कर केंद्र में द्वैध शासन लागू किया गया।
  • इस अधिनियम ने केंद्र और इकाइयों के बीच तीन सूचियों-संघीय सूची (59), राज्य सूची (54) और समवर्ती सूची ( 36 ) के आधार पर शक्तियों का बँटवारा कर दिया।
  • दलित जातियों, महिलाओं और मजदूर वर्ग के लिये अलग से निर्वाचन की व्यवस्था ।
  • इसने भारत शासन अधिनियम, 1858 द्वारा स्थापित भारत सचिव की परिषद को समाप्त कर दिया।
  • मताधिकार का विस्तार हुआ (लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या) ।
  • देश की मुद्रा और साख पर नियंत्रण के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक
  • की स्थापना की गई।
  • भारत शासन अधिनियम 1935 के प्रावधानों के अनुरूप 1937 में वर्मा को भारत से अलग कर दिया गया।
  • संघ लोक सेवा आयोग, प्रांतीय सेवा आयोग तथा दो या अधिक राज्यों के लिये संयुक्त सेवा आयोग की स्थापना हुई।
  • इसके तहत 1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना हुई ।

भारत का संवैधानिक विकास GK PDF (1858 से 1935 तक)

नीचे भारत का संवैधानिक विकास (1858 से 1935 तक) का GK की PDF है।

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