आज के इस Notes में 1757 ई.के प्लासी का युद्ध के बारे मे जानकारी प्राप्त कारेंगें।
प्लासी का युद्ध (Battle of Plassey), 1757 ई.
- अलीनगर की संधि के पश्चात् अंग्रेज़ आक्रान्ता की भूमिका में आ गये। 13 जून, 1757 ई. को क्लाइव ने अपने सैन्य अभियान का आरम्भ चंद्रनगर से किया तथा शीघ्र ही प्लासी तक पहुँच गया।
- प्लासी की लड़ाई से पूर्व ही क्लाइव ने षड्यंत्र के द्वारा नवाब के प्रमुख अधिकारियों (प्रधान सेनापति मीर जाफर, बंगाल का साहूकार जगत सेठ, राय दुर्लभ तथा अमीनचंद) को अपनी तरफ मिला लिया।
- 23 जून 1757 ई. को प्रतिद्वंद्वी सेनाएँ आपस में टकराई जिसमे अंग्रेजी सेना का नेतृत्व क्लाइव ने किया वही नवाब की सेना का नेतृत्व विश्वासघाती मीर जाफर के हाथों में था। इन्हीं राजद्रोहियों के कारण सिराजुद्दौला के विश्वसनीय सैनिक मीर मदान एवं मोहनलाल वीरगति को प्राप्त हुए तथा सिराजुद्दौला ने भागकर मुर्शिदाबाद में शरण ली, जहाँ मीर जाफर के पुत्र ने उसकी हत्या कर दी।
- युद्ध के बाद मीर जाफर को अंग्रेज़ों ने नवाब घोषित कर दिया। जिसके बदले में मीर जाफर ने अंग्रेज़ों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा में मुक्त व्यापार का अधिकार प्रदान किया तथा 24 परगनों की जमींदारी प्रदान की गयी। बंगाल की समस्त फ्रांसीसी बस्तियां अंग्रेज़ों को दे दी गयी। साथ ही यह भी निश्चित हुआ कि भविष्य में अंग्रेज़ पदाधिकारियों तथा व्यापारियों को निजी व्यापार पर कोई चुंगी नहीं देनी होगी।
- प्लासी का युद्ध एक छोटी सी झड़प थी जिसका कोई सामरिक महत्व नहीं था। अंग्रेजों ने इस युद्ध में किसी सैनिक योग्यता का प्रदर्शन नहीं किया था बल्कि राजनीतिक षड्यंत्रों तथा विश्वासघातियों के बल पर प्लासी के युद्ध को जीता। के. एम. पन्निकर के अनुसार यह एक सौदा था जिसमे बंगाल के धनी सेठों तथा मीर जाफर ने नवाब को अंग्रेजों के हाथों में बेच डाला।
- प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल धीरे धीरे अंग्रेज़ों के अधीन हो गया। नवाब मीर जाफर पूर्णतया अंग्रेज़ों पर निर्भर था। अब कम्पनी सिर्फ व्यापारिक कम्पनी नहीं रही बल्कि एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति बन गयी तथा नृप निर्माता की भूमिका में आ गयी। इसे इस सन्दर्भ में देख सकते है कि जब ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बंगाल के नवाब मीर जाफर को पदच्युत किया तब मुगल बादशाह मूकदर्शक बने रहे।
- प्लासी की लड़ाई के पश्चात् बंगाल के अनंत साधनों पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। बंगाल में अंग्रेज़ों को मिली पहली किस्त 8 लाख पौंड की थी, जो चांदी के सिक्कों के रूप में थी। इसके पश्चात् बंगाल की लूट का निरंतर क्रम चलता रहा तथा ब्रिटिश कम्पनी बंगाल से अन्य विदेशी शक्तियों जैसे डचों, फ्रांसीसियों को परास्त कर सकने में सक्षम हुई साथ ही अन्य क्षेत्रीय शक्तियों का भी दमन कर दिया गया फलतः धीरे-धीरे ब्रिटिश कम्पनी व्यापारिक एकाधिकार से राजनैतिक एकाधिकार की ओर बढ़ने लगी।
- इसी युद्ध के सन्दर्भ में जी.बी. मालेसन ने कहा था कि “कोई ऐसा युद्ध नहीं हुआ जिसके तात्कालिक और स्थायी परिणाम इतने महत्त्वपूर्ण हुए हो।”
प्लासी के युद्ध के बाद का घटनाक्रम (Sequence of events after battle of Plassey)
- मीर जाफर ईस्ट इंडिया कम्पनी की कठपुतली था परंतु वह 1760 ई. आते आते क्लाइव और कम्पनी की आर्थिक मांगों को पूरा कर पाने में असमर्थ हो गया। 1760 ई. तक मीर जाफर पर कम्पनी के 25 लाख रुपए बकाया हो गये थे। फलतः कम्पनी ने मीर जाफर पर डचों के साथ मिलकर अंग्रेज़ों के विरुद्ध गतिविधियों में सलग्न होने का आरोप लगाकर नवाब के पद से अपदस्थ कर दिया। इसके पश्चात् कम्पनी ने मीर कासिम को बंगाल का नवाब बनाया।
- मीर कासिम ने नवाब बनने के बाद कम्पनी को बर्दमान, मिदनापुर तथा चटगाँव के जिले प्रदान किये साथ ही कम्पनी के दक्षिण अभियानों के लिए 5 लाख रुपए दिए। मीर कासिम ने कम्पनी के प्रमुख अधिकारियों को भी पुरस्कृत किया।
- मीर कासिम योग्य प्रशासक एवं कुशल नेता था। नवाब बनने के कुछ समय पश्चात् कम्पनी के प्रभाव से दूर रहने के लिए वह अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर ले गया। मीर कासिम ने सेना का गठन यूरोपीय पद्धति पर किया तथा नौकारशाही का भी पुनर्गठन किया। मुंगेर में तोपों और तोड़ेदार बंदूकों को बनाने की व्यवस्था की गयी। मीर कासिम ने वित्तीय मामलों को भी कुशलता से सुलझाया तथा वित्तीय भ्रष्टाचार को समाप्त करने का प्रयास किया।
- मीर कासिम के सुधारात्मक प्रयासों से नवाब और कम्पनी के सम्बन्धों में तनाव आ गया। इन्हीं परिस्थितियों में नवाब ने जब आंतरिक व्यापार पर लगे सभी करों को समाप्त कर दिया तब अंग्रेज़ों के विशेषाधिकार समाप्त हो गये। ध्यातव्य है कि आंतरिक व्यापार में बढ़ते भ्रष्टाचार से मीर कासिम के वित्तीय साधन तथा राजनीतिक अधिकार सीमित हो रहे थे। इसके अंतर्गत मीर कासिम ने दस्तक का प्रश्न उठाया जिसके अनुसार अंग्रेज़ों को कर की छूट दी गयी थी। ब्रिटिश अधिकारियों ने यहीं दस्तक धन लेकर भारतीय व्यापारियों को भी देना आरम्भ कर दिया। जिससे बंगाल के राजस्व को क्षति हो रही थी। फलतः मीर कासिम ने सभी आंतरिक करों को हटा दिया, अब भारतीय व्यापारी भी अंग्रेज़ व्यापारियों के समान हो गये।
- एच.एच. डॉडवैल के अनुसार युद्ध (बक्सर का युद्ध) परिस्थितियों के कारण हुआ न कि युद्ध के उद्देश्य से। नवाब अपनी इच्छा से बंगाल में राज्य करना चाहता था परन्तु अंग्रेज़ों ने अपने विशेषाधिकारों की रक्षा के लिए नवाब पर युद्ध थोप दिया।
- फलतः 1763 ई. में अंग्रेजों ने मीर कासिम के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी तथा बंगाल का अगला नवाब पुनः मीर जाफर ही बना दिया गया।