आज के इस Notes में Anglo Sikh War (आंग्ल सिख युद्ध) के बारे मे जानकारी प्राप्त कारेंगें- प्रथम आंग्ल सिख युद्ध (First Anglo Sikh War), और द्वितीय आंग्ल सिख युद्ध (Second Anglo Sikh War) के बारे में।
प्रथम आंग्ल सिक्ख युद्ध
ब्रिटिश गवर्नर
परिणाम
1845-46 ई.
लार्ड होर्डिंग
लाहौर की संधि
द्वितीय आंग्ल सिक्ख युद्ध
ब्रिटिश गवर्नर
परिणाम
1848-49 ई.
लार्ड डलहौजी
लाहौर की संधि
First Anglo Sikh War (प्रथम आंग्ल सिख युद्ध), 1845-46 ई.
1839 ई. में पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के पश्चात् राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण व्याप्त था। 1843 ई. में महाराजा रणजीत सिंह के अल्पवयस्क पुत्र दलीपसिंह का राज्यारोहण किया गया तथा इन्हीं के शासनकाल में 1845-46 ई. में प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध हुआ।
युद्ध से पूर्व 1844 ई. में लार्ड एलनबरो के उत्तराधिकारी के रूप में लार्ड होर्डिंग गवर्नर जनरल बनकर भारत आया, जो एक प्रख्यात सैनिक भी था। इन्हीं के शासनकाल में पंजाब विलय हेतु प्रथम सिख युद्ध की रणनीति बनाई गयी।
इस युद्ध की पांचवीं लड़ाई 1846 ई. में सबराओं की लड़ाई के रूप में निर्णायक सिद्ध हुई। जिसमें सेनापति लालसिंह और तेजसिंह के विश्वासघात ने सिखों की कमजोरी को प्रकट कर दिया फलतः सिखों की पूर्णतया हार हुई। इस युद्ध में अंग्रेजों ने लाहौर पर अधिकार कर लिया तथा ब्रिटिश सेना की तैनाती कर दी गयी।
इसके पश्चात् अंग्रेज़ों ने सिखों से 1846 ई. में लाहौर की संधि की जिसकी शर्तें इस प्रकार थी-
सिखों ने सतलुज के पार के अपने समस्त प्रदेश अंग्रेजों को प्रदान किये।
सिख महाराजा ने सतलुज और व्यास नदियों के मध्य स्थित सभी दुर्गों पर अंग्रेज़ों के अधिकार को स्वीकार किया।
डेढ़ करोड़ रुपए सिखों को दंड के रूप में अंग्रेज़ों को देना पड़ा। जिसमे से 50 लाख रुपए कोष में से तथा शेष के लिए सिंध और व्यास नदी के मध्य का पहाड़ी क्षेत्र अंग्रेजों को प्रदान किया गया।
महाराजा को अंग्रेज़ों के अतिरिक्त अन्य किसी यूरोपीय व्यक्ति को अपनी सेवा में रखने की अनुमति नहीं होगी।
सिखों की सेना को सीमित कर दिया गया। इसके अंतर्गत 12000 घुड़सवार तथा 20000 पैदल सेना रखना निर्धारित किया गया।
अल्पवयस्क दलीपसिंह को सिख महाराजा, रानी जिन्दा को उसका संरक्षक तथा लालसिंह को वजीर स्वीकार कर लिया गया।
सर हेनरी लौरेंस को लाहौर में ब्रिटिश रेजीडेंट नियुक्त किया गया तथा अंग्रेज़ों ने पंजाब के आंतरिक प्रशासन में हस्तक्षेप न करने का वचन दिया।
प्रथम आंग्ल सिख युद्ध के पश्चात् पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में पूर्णतया विलय नहीं किया गया था क्योंकि सिखों की सेना लाहौर और पेशावर में बनी हुई थी। साथ ही सिख योद्धा वर्ग से थे जो गुरिल्ला युद्ध में पारंगत थे। ऐसी परिस्थिति में अंग्रेज़ों ने लाहौर की कठोर संधि करके सिखों को शक्तिहीन कर दिया फलतः पंजाब राज्य का ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित होना अब समय का ही प्रश्न हो गया।
Second Anglo-Sikh War (द्वितीय आंग्ल सिख युद्ध), 1848-49 ई.
दलीप सिंह से 1846 ई. में अंग्रेज़ों ने भैरोवाल की संधि की जिसके अनुसार महाराजा के संरक्षण के लिए ब्रिटिश सेना का पंजाब में रहना निश्चित किया गया। इस प्रकार अब राज्य के प्रत्येक विभाग पर अंग्रेज़ों का नियंत्रण हो गया तथा सैनिक और असैनिक शक्तियाँ अंग्रेज़ों को दे दी गयी।
1848 ई. में साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल डलहौजी ने भारत में कार्य भार संभाला। इसी दौरान पंजाब पर पुनः आक्रमण करने का अवसर मुल्तान के गवर्नर मूलराज के विद्रोह ने प्रदान किया तथा साथ ही सिख सेना के द्वारा अपनी शक्ति को पुनः स्थापित करने के प्रयास ने भी अंग्रेज़ों को उत्तेजित किया।
इसी का परिणाम था कि 1848-49 ई. में हुए द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध में रामनगर का युद्ध, चिलियावाला का युद्ध तथा गुजरात का युद्ध लड़ा गया। जिसमें गुजरात का युद्ध निर्णायक युद्ध सिद्ध हुआ, जिसे तोपों के युद्ध के नाम से भी जाना गया।
द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध के बाद डलहौजी ने चार्ल्स नेपियर के नेतृत्व में पंजाब को 1849 ई. में ब्रिटिश राज्य में पूर्ण रूप से विलय कर लिया।
इस युद्ध के पश्चात् दलीपसिंह को 50000 रुपए की वार्षिक पेंशन देकर शिक्षा प्राप्त करने के लिए ब्रिटेन भेज दिया गया।