आंग्ल मराठा युद्ध GK Notes in Hindi | Anglo Maratha Struggle GK Facts

आज के इस Notes में आंग्ल-मराठा युद्ध के बारे मे जानकारी प्राप्त कारेंगें- प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध, द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध और तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध।

आंग्ल मराठा युद्ध GK Notes

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  • मुगल साम्राज्य के पतन के पश्चात् क्षेत्रीय शक्तियों में मराठा प्रभावशाली होकर उभर रहे थे। तो वहीं अंग्रेज़ बंगाल विजय के पश्चात् यूरोपीय शक्तियों में अपनी सर्वोच्चता सिद्ध कर चुके थे।
  • मराठा शक्ति के उभार ने यह निश्चित कर दिया कि भारत में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना के लिए यह अनिवार्य था कि अंग्रेज़ों का मराठों के साथ संघर्ष हो। इसी परिप्रेक्ष्य में अंग्रेजों ने मराठों के साथ तीन युद्ध लड़े तथा भारत में ब्रिटिश सत्ता को सुदृढ़ किया।
  • मराठवाड़ा क्षेत्र पर ब्रिटिश हस्तक्षेप का मुख्य कारण वाणिज्यिक हितों से संबंधित था। 1784 ई. के पश्चात् चीन के साथ ब्रिटिश कम्पनी के कपास के व्यापार हेतु तथा गुजरात और बॉम्बे के तट से होने वाली व्यापारिक गतिविधियों ने मराठा क्षेत्र में अंग्रेज़ों की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं को बढ़ाने का कार्य किया।

प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध, 1775-82

  • गवर्नर जनरलः वारेन हेस्टिंग्स
  • सालबाई की संधि

द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध, 1803-05

  • गवर्नर जनरलः लार्ड वेलेजली
  • बसीन की संधि

तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध, 1817-18

  • गवर्नर जनरलः लार्ड हेस्टिंग्स
  • मराठा संघ का विघटन
  • मराठा संघ के प्रमुख के लिए जब मराठों का आंतरिक संघर्ष शुरू हुआ तब अंग्रेजों को मराठों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अवसर प्राप्त हुआ।
  • पानीपत की लड़ाई के पश्चात् 1761 ई. में पेशवा बने माधवराव प्रथम ने मराठा शक्ति को पुनर्गठित किया। किन्तु शीघ्र ही 1772 ई. में पेशवा माधवराव की मृत्यु के पश्चात् मराठों में गृह कलह प्रारंभ हो गया तथा माधवराव के पुत्र नारायणराव पेशवा बने किन्तु 1773 ई. में चाचा रघुनाथ राव ने उसकी हत्या करवा दी।
  • इसके पश्चात नाना फडनवीस के नेतृत्व में सरदारों ने रघुनाथ राव का विरोध किया तथा नारायणराव के पुत्र माधवराव द्वितीय को पेशवा घोषित किया गया। उपर्युक्त परिस्थिति में रघुनाथ राव ने 1775 ई. में अंग्रेजों से सूरत की संधि की।
  • सूरत की संधि के अनुसार अंग्रेज रघुनाथ राव को पेशवा के पद पर प्रतिष्टित करने हेतु सैन्य सहायता प्रदान करेंगे, तो वहीं सालसेट और बसीन का क्षेत्र तथा भड़ौच और सूरत की आय पर अंग्रेज़ों का अधिकार होगा।
  • इन्हीं परिस्थितियों में प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध 1775-82 ई. के मध्य लड़ा गया तथा 1782 ई. में यह युद्ध अनिर्णायक सिद्ध होते हुए सालबई की संधि से समाप्त हुआ।
  • इस संधि से सालसेट और थाना का दुर्ग अंग्रेजों को प्राप्त हुआ तथा माधवराव द्वितीय को पेशवा स्वीकार किया गया। दोनों पक्षों ने युद्धकाल के दौरान जीते गये प्रदेश एक दूसरे को वापिस कर दिए तथा भविष्य में एक दूसरे पर आक्रमण न करने का आश्वासन दिया। रघुनाथ राव को 3.5 लाख रुपए वार्षिक पेंशन देना स्वीकार किया गया।
  • 1800 ई. में नाना फड़नवीस की मृत्यु के पश्चात् मराठा क्षेत्र में अनिश्चितता का वातावरण था। साथ ही यह दौर फ्रांसीसी भय से भी संलग्न था। इसी समय 1798 ई. में वेलेजली गवर्नर जनरल बनकर भारत आया जो कि साम्राज्यवादी हितों का पोषक था।
  • इसी सन्दर्भ में लार्ड वेलेजली ने भारतीय भू-भाग में नेपोलियन के खतरे से निपटने हेतु भारतीय राज्यों के अधिग्रहण के लिए सहायक संधि प्रणाली का विकास किया।
  • 1801 ई. में पेशवा बाजीराव द्वितीय ने जसवंत राव होल्कर के भाई बिट्टू जी की हत्या कर दी
    फलतः होल्कर ने पुना पर आक्रमण कर पेशवा और सिंधिया की संयुक्त सेना को हदपसर के स्थान पर 1802 ई. में परास्त कर दिया।
  • पूना पर होल्कर का नियंत्रण होने के पश्चात् बाजीराव द्वितीय ने बसीन में अंग्रेज़ो की शरण ली तथा 1802 ई. में बेसिन की संधि के रूप में सहायक संधि की गई। बसीन की संधि के अनुसार-
    • पेशवा ने ब्रिटिश संरक्षण के अंतर्गत पूना में भारतीय और ब्रिटिश सेना को रखना स्वीकार किया।
    • ईस्ट इंडिया कम्पनी को सूरत नगर प्रदान किया गया।
    • पेशवा ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी को ताप्ती और नर्मदा के मध्य का क्षेत्र प्रदान किया, जिनकी कुल आय 26 लाख रूपए थी।
    • पेशवा ने अपने विदेशी मामले ब्रिटिश कम्पनी के अधीन कर दिए।
    • पेशवा ने निजाम से चौथ प्राप्त करने का अधिकार छोड़ दिया तथा गायकवाड़ के विरुद्ध युद्ध न करने का वचन अंग्रेजों को दिया।
    • पेशवा ने कम्पनी की विरोधी यूरोपीय शक्तियों को अपनी सीमाओं में नहीं रहने देना स्वीकार किया।
  • अंग्रेज़ों के परिप्रेक्ष्य से बसीन की संधि का महत्व इस प्रकार है-
    • बसीन की संधि किसी एक राज्य के साथ ना होकर राज्यों के संघ के साथ की गई थी।
    • पेशवा केवल पूना का ही नहीं बल्कि मराठा संघ का भी अध्यक्ष था फलतः संघ के अधीनस्थ राज्य भी बसीन की संधि के उपरांत स्वतः ही अंग्रेज़ों के अधीन हो गये।
    • अंग्रेज़ों की सहायक सेना अब मैसूर, हैदराबाद, लखनऊ के साथ-साथ पूना में भी नियुक्त कर दी गई, जो भारत के मुख्य केंद्रीय स्थल थे। अब ब्रिटिश सेना समस्त भारत में शीघ्रातिशीघ्र पहुँच सकने में समर्थ थी।
  • बसीन की संधि ने पेशवा को युद्धों के भार से मुक्त कर दिया। अब मराठों ने हैदराबाद और गायकवाड़ के विरुद्ध युद्ध न करने की नीति अपनाई तथा अपने अधीनस्थ क्षेत्रों को कम्पनी के अधीन कर दिया।
  • यह संधि मराठों के लिए अपमानजनक संधि थी जिसने द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध की नींव रखने का काम किया। बसीन की सहायक संधि के बाद भोसलें, सिंधिया और पेशवा ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध किया जबकि गायकवाड़ और होल्कर इस संघर्ष से अलग रहे। द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध के दौरान हुई अन्य संधियाँ इस प्रकार है:
क्षेत्रीय शक्तियाँसंधिवर्षमहत्वपूर्ण बिंदु
भोसलेदेवगाँव की संधि1803 ईअंग्रेज़ों को कटक तथा वर्धा नदी का पश्चिमी भाग प्राप्त हुआ।
सिंधियासुर्जीअर्जन गाँव की संधि1803 ईगंगा यमुना के दोआब प्रदेश, राजस्थान के कुछ क्षेत्र, अहमदनगर का दुर्ग, भड़ौच, गोदावरी और अजंता घाट का क्षेत्र अंग्रेज़ों को प्राप्त हुआ।
होल्करराजपुरघाट की संधि1805 ईचम्बल नदी के उत्तरी प्रदेश और बुंदेलखंड का क्षेत्र अंग्रेजों को प्राप्त हुआ।
  • द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध ने मराठा शक्ति का अंत तो नहीं किया अपितु मराठा शक्ति को निर्बल अवश्य कर दिया। इस युद्ध के सन्दर्भ में सिडनी ओवन ने कहा था की इस संधि के फलस्वरूप कम्पनी को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से भारत का साम्राज्य मिल गया।
  • वेलेजली के पश्चात् अंग्रेज़ों ने अहस्तक्षेप तथा तटस्थता की नीति को अपनाया तथा यह नीति लार्ड हेस्टिंग्स के आने तक जारी रही। लार्ड हेस्टिंग्स भी वेलेजली की तरह साम्राज्यवादी नीति का पालन करते थे।
  • यही कारण है कि हेस्टिंग्स जब गवर्नर जनरल बनकर भारत आया तब उसने अंग्रेजी श्रेष्ठता को स्थापित करने हेतु क्षेत्रीय शक्तियों के विरुद्ध दमनात्मक नीति का पालन किया।
  • इसी क्रम में हेस्टिंग्स ने मराठा क्षेत्र में पिंडारियों की शक्ति के दमन के लिए अभियान की शुरुआत की। मराठा क्षेत्र में पिंडारी जो मराठों की सेना में शामिल होते थे अब वे स्वतन्त्र रूप से लूटमार कर रहे थे। लूट का एक हिस्सा वे मराठों को कर के रूप में देते थे।
  • हेस्टिंग्स के द्वारा पिंडारियों के विरुद्ध अभियान से मराठों के प्रभुत्व को चुनौती मिली फलतः दोनों पक्षों के लिए युद्ध अनिवार्य हो गया।
  • इसी दौरान हेस्टिंग्स ने पेशवा, सिंधिया और नागपुर के महाराजा को अपमानजनक संधि करने को विवश किया। नागपुर के अप्पा साहिब से 1816 ई. में तथा पेशवा और सिंधिया से 1817 ई. में कठोर तथा अपमानजनक संधि की गई।
  • पिंडारियों के विरुद्ध ब्रिटिश सेना की कार्यवाही तथा पेशवा, सिंधिया, होल्कर और नागपुर के महाराजा के साथ किये गये अपमानजनक व्यवहार ने तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध को शुरू कर दिया। इस युद्ध में ब्रिटिश सेना की विजय हुई। तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध में पेशवा को किर्की के युद्ध में परास्त करके अंग्रेज़ों ने पेशवा के अधिकार क्षेत्र वाला पूना भी अपने अधीन कर लिया। पेशवा को पेंशन देकर कानपुर के पास बिठूर भेज दिया गया।
  • इसके अलावा भोंसले को सीताबर्डी के स्थान पर तथा होल्कर को महीदपुर के स्थान पर अंग्रेज़ों ने परास्त किया। इस प्रकार मराठा संघ के विघटन का कार्य पूर्ण हुआ तथा अंग्रेज़ भारत में सर्वोच्च शक्ति के रूप में स्थापित हुए।

मराठों की असफलता के कारण (Causes for failure of Marathas)

मराठा संघ अंग्रेज़ों की आधुनिक सैन्य व्यवस्था, नेतृत्व क्षमता तथा कूटनीतिक चातुर्य से बहुत पीछे थे। जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत देख जा सकता है-

मराठों की असफलता के कारण :

  • आपसी गुटबंदी और असंघठित मराठा संघ
  • मराठों की युद्ध नीति
  • योग्य नेतृत्व का अभाव
  • ब्रिटिशों की उत्तम कूटनीति
  • कमजोर नौसैनिक क्षमता
  • चौथ और सरदेशमुखी नीति
  • स्थिर आर्थिक नीति का अभाव

आपसी गुटबंदी और असंघठित मराठा संघ

(Mutual Factionalism and Unorganised Maratha Confederacy)

  • पेशवा बालाजी बाजीराव के समय से ही मराठों को अलग-अलग क्षेत्र में विशेष अधिकार सौंपने के कारण आपसी गुटबंदी और निजी स्वार्थों को बढ़ावा मिला। सिंधिया, होल्कर, गायकवाड, भोंसले स्वयं को मराठा राज्य का अंग न मानकर अलग-अलग इकाइयों में स्थापित हुए, जिनमे एकता और संघठन का अभाव था। परिणामस्वरुप संघठित ब्रिटिश सेना के विरुद्ध असंघठित मराठा संघ पराजित हुआ।
  • सिंधिया, होल्कर, भोंसले, गायकवाड़ आदि राज्यों ने आपसी ईर्ष्या और द्वेष के कारण ब्रिटिश कम्पनी के विरुद्ध कभी एकजुट होकर युद्ध नहीं किया। 1803 ई. में जब सिंधिया और भोंसले कम्पनी के विरुद्ध लड़े तब होल्कर अलग रहा, जबकि 1804 ई. में ही होल्कर पर अंग्रेजों ने आक्रमण कर दिया। इस प्रकार मराठों में पारस्परिक सहयोग की भावना का अभाव था।

मराठों की युद्ध नीति (War Policy of Marathas)

  • सशक्त ब्रिटिश सेना के समक्ष मराठों की सेना सफल नहीं हो सकी। मराठों ने परम्परागत गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को त्यागकर पैदल सेना और तोपखाने पर अधिक बल दिया तथा घुड़सवार सेना की अवहेलना की।
  • मराठों ने युद्ध की वैज्ञानिक और आधुनिक प्रणाली को नहीं अपनाया। मराठे हथियार, बारूद, तोप के विकास के लिए विदेशी तकनीक पर निर्भर थे।
  • वहीं दूसरी तरफ अंग्रेजों की सैनिक क्षमता, घुड़सवार सेना, तोपखाना, अनुशासन एवं नेतृत्व क्षमता अधिक सशक्त अवस्था में थी। साथ ही, सैनिक गुप्तचर प्रणाली ने अंग्रजों को मराठों के पारस्परिक मतभेदों से अवगत कराया। फलतः अंग्रेजों को विजय प्राप्त हुई।

योग्य नेतृत्व का अभाव (Lack of Competent Ledership)

  • मराठों को अंग्रेज़ों की भाँति योग्य नेतृत्व नहीं मिल सका। इसके अलावा जो भी योग्य मराठे (महादजी सिंधिया, अहिल्याबाई होल्कर, पेशवा माधव राव, नाना फड़नवीस आदि) थे वे 1800 ई. तक मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे।
  • इसके पश्चात् पेशवा बाजीराव द्वितीय ने स्वयं के स्वार्थ के लिए 1802 ई. में बसीन की सहायक संधि अंग्रेज़ों से की तथा मराठा संघ की स्वतंत्रता ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन कर दी।
  • इसी प्रकार दौलतराव सिंधिया, महादजी सिंधिया का अयोग्य उत्तराधिकारी था जो कि विलासी और आलसी प्रवृत्ति का शासक था। tricks

अंग्रेजों की उत्तम कूटनीति (Excellent Diplomacy of British)

क्षेत्रीय शक्तियों के विरुद्ध युद्ध करने से पूर्व अंग्रेज़ अन्य क्षेत्रीय शक्तियों को मित्र बना कर शत्रु को अकेला करने की रणनीति अपनाते थे। बसीन की संधि से पेशवा को तथा द्वितीय मराठा युद्ध से पूर्व गायकवाड़ को अपनी तरफ कर के अंग्रेजों ने अपने शत्रु राज्यों को कमजोर किया।

कमज़ोर नौसैनिक क्षमता (Weak Naval Capacity)

मराठों ने नौसेना के महत्व को नहीं समझा जबकि अंगेजों ने नौसेना की शक्ति के बल पर भारत में विदेशी शक्तियों को पराजित करने के साथ ही भारत की क्षेत्रीय शक्तियों को भी परास्त किया।

चौथ और सरदेशमुखी नीति (Policy of Chauth and Sardeshmukhi)

मराठों द्वारा चौथ और सरदेशमुखी की कर नीति ने क्षेत्रीय राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध को स्थापित नहीं होने दिया। इसके आलावा मराठों ने चौथ और सरदेशमुखी की आय का उपयोग आर्थिक और सैनिक में न करके भोग विलास में किया।

स्थिर आर्थिक नीति का अभाव (Lack of Stable Economic Policy)

  • मुगलों के विरुद्ध युद्ध काल में अधिकतर कृषक सैनिक बन गये। ये सैनिक बलपूर्वक एकत्रित की गई धनराशि पर निर्भर थे, जिसने मराठा क्षेत्र की आर्थिक स्थिति को और अधिक बिगाड़ दिया।
  • मराठा क्षेत्र में अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण पर ध्यान देने के स्थान पर सैनिक सेवा ही राष्ट्रीय उद्योग बन गया जिससे मराठा क्षेत्र की आर्थिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ा।

Thamkyou.

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