सहायक संधि प्रणाली (Subsidiary Alliance System) Notes in Hindi
भूमिका
- लार्ड वेलेजली के आगमन से पूर्व ब्रिटिशों की भारत में साम्राज्यवाद के विस्तार हेतु कोई स्पष्ट नीति नहीं थी। वेलेजली से पूर्व कार्नवालिस तथा सर जॉन शोर की अहस्तक्षेप की नीति ने कम्पनी के हितों का संवर्धन नहीं किया था।
- इसी दौरान 18वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में वेलेजली गवर्नर जनरल बनकर भारत आया, जिसका मुख्य उद्देश्य कम्पनी को भारत की सर्वोच्च शक्ति के रूप में स्थापित करना था। इस हेतु वेलेजली ने शांति एवं निष्पक्षता की नीति का त्याग कर के केवल युद्ध एवं युद्ध की नीति का अनुसरण किया।
- वेलेजली के आगमन के समय भारत में फ्रांसीसियों का प्रभाव बढ़ रहा था। नेपोलियन के बढ़ते प्रभाव एवं भारत में टीपू जैसे शासकों के फ्रांसीसियों से गठजोड़ ने ब्रिटिशों को सहायक संधि प्रणाली को अपनाने के लिए प्रेरित किया जो भारतीय शक्तियों से फ्रांसीसियों को दूर कर सके तथा भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का विस्तार किया जा सकें।
- सहायक संधि प्रणाली का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले ने किया था। डुप्ले ने भारतीय नरेशों को सैनिक सहायता देने के बदले में धन लेने की प्रथा को आरम्भ किया था, जिसे बाद में क्लाइव ने भी अपनाया। किन्तु, वेलेजली ने इस प्रणाली को सहायक संधि का नाम देकर अधिक व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया।
Features of Subsidiary Alliance (सहायक संधि की विशेषताएं)
- देशी रियासतों को कम्पनी की स्वीकृति के बिना किसी अन्य यूरोपीय शक्ति को अपने राज्य क्षेत्र में शरण या नौकरी पर नहीं रखना होता था।
- देशी राज्यों की विदेश नीति ब्रिटिश कम्पनी के अधीन होगी तथा किसी अन्य राज्य से कम्पनी की अनुमति के बिना युद्ध, संधि या मित्रता नहीं की जा सकेंगी।
- देशी रियासतों की सुरक्षा एवं सार्वजानिक शांति बनाये रखने के लिए ब्रिटिश कम्पनी उन राज्यों में अंग्रेजी सेना को नियुक्त करेगी। इस सेना के बदले में बड़ी रियासतों को पूर्ण प्रभुसत्ता युक्त प्रदेश कम्पनी को देना होगा तथा छोटी रियासतें कम्पनी को नकद धन देगी।
- देशी राज्यों को अपने क्षेत्र में एक ब्रिटिश रेजिडेंट रखना होगा जो रियासत के शासन प्रबंध को देखने का कार्य करेगे।
- ब्रिटिश कम्पनी भारतीय रियासतों की आतंरिक और बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा करेगी।
- ब्रिटिश कम्पनी भारतीय रियासतों के आंतरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी।
सहायक संधि से ब्रिटिश कम्पनी को लाभ (Benefits to British Company from Subsidiary Alliance)
- देशी रियासतों से फ्रांसीसियों का प्रभाव पुर्णतः समाप्त हो गया क्योंकि अब उन्हें देशी राज्यों में नौकरी या सेवा करने के अवसर प्राप्त नहीं थे।
- ब्रिटिश कम्पनी को सेना के संगठन पर खर्च करने से मुक्ति मिली क्योंकि सहायक संधि के उपरांत यह व्यय देशी राज्यों को वहन करना पड़ा।
- देशी राज्यों की सुरक्षा के लिए रखी गई ब्रिटिश सेना का उपयोग अंग्रेजों ने कम्पनी के शत्रुओं और क्षेत्रीय शक्तियों को नष्ट करने में किया तथा सामरिक महत्त्व के स्थानों पर अपना अधिग्रहण भी कर लिया।
- ब्रिटिश कम्पनी से प्राप्त सरंक्षण से देशी रियासतें निरस्त्र हो गई। अब ये रियासतें एक-दूसरे से पृथक कर दी गई फलतः वे अंग्रेजो के विरुद्ध संघ या गुट बनाने में भी असमर्थ हो गये।
- विदेशी सम्बंध कम्पनी के अधीन होने के कारण देशी रियासतों के आपसी विवादों का निपटारा अंग्रेजों की मध्यस्थता में किया जाने लगा।
- सहायक संधि से कम्पनी को प्राप्त पूर्ण प्रभुसत्ता संपन्न प्रदेश ने कम्पनी की साम्राज्यवादी सीमा का विस्तार बिना युद्ध किये ही कर दिया।
- देशी रियासतों में नियुक्त ब्रिटिश रेजीडेंट कालांतर में राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने लगे।
- सहायक संधि से कम्पनी के विरुद्ध बढ़ते असंतोष और शत्रुता की भावना को रोकने में सफलता मिली। देशी रियासतों ने कम्पनी का सरंक्षण प्राप्त कर के अपनी विस्तारवादी योजनाओं को त्याग दिया तथा निशस्त्रीकरण को बढ़ावा दिए जाने के कारण क्षेत्रीय शक्तियों की युद्ध लड़ने की क्षमता भी समाप्त हो गई।
सहायक संधि का देशी रियासतों पर प्रभाव (Impact of Subsidiary Alliance Over Princely States)
- सहायक संधि स्वीकार कर लेने के पश्चात् देशी राज्यों में निशस्त्रीकरण को बढ़ावा दिया गया तथा विदेश नीति कम्पनी को सौंप दी गई। फलतः देशी रियासत के शासक नाममात्र के शासक रह गये तथा कम्पनी की सर्वोच्चता स्वीकार कर के अपनी स्वतंत्रता खो बैठे।
- ब्रिटिश सेना का व्यय देशी राज्यों के द्वारा उठाये जाने पर रियासतों की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई। रियासतों द्वारा नकद धनराशि दिए जाने में असमर्थ होने पर शासकों को राज्य के भू-भाग अंग्रेजों को देना होता था।
- रियासतों में नियुक्त अंग्रेज रेजीडेंटो को राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं था लेकिन फिर भी ये कालांतर में शासकों के कार्यों में निरंतर हस्तक्षेप करने लगे। फलतः देशी रियासतों में शासन का भार रेजिडेंटो को सौंप दिया गया।
- देशी राज्यों को प्रदान किये गये सैन्य सुरक्षा से देशी शासक विलासी हो गये तथा शासकों से स्वाभिमान और उत्तरदायित्व के चले जाने से रियासतों की स्वंत्रतता भी जाती रही।
- इस प्रकार सहायक संधि का देशी रियासतों पर पड़े प्रभावों को मुनरो ने स्पष्ट करते हुए कहा कि “मित्र राज्यों को राष्ट्रीय चरित्र की स्वतंत्रता और समस्त सम्मानपूर्ण व्यवहार खोकर ही सुरक्षा प्राप्त हुई।”
सहायक संधि का क्रियान्वयन (Excution of Subsidiary Alliance)
- ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विस्तार के लिए अपनाई गई सहायक संधि को कुछ देशी राज्यों ने स्वतः ही स्वीकार कर लिया तो वहीं कुछ राज्यों ने युद्ध में पराजित होकर इस प्रणाली को स्वीकार किया।
- इसके अलावा कुशासन के आरोप लगाकर भी वेलेजली ने कर्नाटक, तंजौर और सूरत को भी ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।
वेलेजली द्वारा की गई कुछ प्रमुख सहायक संधियाँ
सहायक संधियाँ की गई देशी रियासतें | सहायक संधि वर्ष |
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1. हैदराबाद (निजाम) | 1798 ई. |
2. मैसूर | 1799 ई. |
3. तंजौर | 1799 ई. |
4. अवध | 1801 ई. |
5. मराठा (पेशवा) | 1802 ई. |
6. बरार (भोंसलें) | 1803 ई. |
7. सिंधियां | 1804 ई. |